मोदी सरकार के 3 साल: रोजगार के मोर्चे पर पूरी तरह विफल

लखनऊ :26 मई 2017 को देश के तकरीबन 400 अखबारों में पहले पेज विज्ञापन दिया गया है, जो मोदी सरकार के तीन साल की उपलब्धियों से पटा पड़ा है.टीवी पर रेडियो पर विज्ञापनों की भरमार होगी. इस जश्न को ‘मोदी फेस्ट’ का नाम दिया गया है जो देश के तकरीबन हर छोटे-बड़े शहर में मनाया जाएगा.

केंद्र सरकार का हर मंत्रालय अपनी बेमिसाल उपलब्धियों के बखान के लिए एक पुस्तिका भी जारी करेगा, जिसमें मोदी काल को यूपीए काल से बेहतर ठहराने की हर संभव कवायद होगी.

रोजगार सृजन आठ साल के न्यूनतम स्तर पर,,,,,,,,,,,,,,,,

देश में रोजगार की दशा और दिशा पर केंद्र सरकार के श्रम मंत्रालय का श्रम ब्यूरो हर तिमाही में सर्वे कर आंकड़े जारी करता है. पिछली कई तिमाहियों में यह आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद देश में रोजगार सृजन लगातार कम हो रहा है.

श्रम ब्यूरो के ताजा सर्वे के अनुसार वर्ष 2015 और 2016 में 1.55 और 2.13 लाख नए रोजगार सृजित हुए जो पिछले आठ का सबसे निचला स्तर है.

मनमोहन सिंह काल के आखिरी सबसे खराब दो सालों यानी 2012 और 2013 में कुल 7.41 लाख नए रोजगार सृजित हुए पर मोदी राज के दो सालों 2015 और 16 में कुल 3.86 लाख रोजगार सृजित हुए हैं. यानी 2.55 लाख रोजगार कम.

यूपीए-2 के शुरू के दो साल यानी 2009 और 2010 में 10.06 और 8.65 लाख नए रोजगार सृजित हुए थे. यदि इसकी तुलना 2015 और 2016 से की जाए तो मोदी राज के इन दो सालों में तकरीबन 74 फीसदी रोजगार के अवसर कम हो गए हैं.

श्रम मंत्रालय का श्रम ब्यूरो ने यह तिमाही सर्वे 2008-09 के वैश्विक संकट के बाद रोजगार पर पड़े प्रभाव के आकलन के लिए 2009 से शुरू किया था.

मोदी सरकार ने इस सर्वे में कई बदलाव किए हैं और सर्वे में शामिल प्रतिष्ठानों की संख्या 10 हजार कर दी है जो पहले तकरीबन दो हजार थे. इस सर्वे में देश के समस्त राज्यों को  शामिल किया गया जो पहले 11 राज्यों तक सीमित था.

पहले इस श्रम सर्वे में यानी 2015 तक आठ सेक्टर शामिल थे-कपड़ा, चमड़ा, ऑटोबोइल्स, रत्न और आभूषण, ट्रांसपोर्ट, आईटी/बीपीओ, हैंडलूम,पॉवरलूम.

मोदी सरकार ने सत्ता पर काबिज होते ही रोजगार बढ़ाने के लिए बड़े तामझाम के साथ अनेक घोषणाएं कीं जिनसे युवाओं में रोजगार पाने की उम्मीद जगना स्वाभाविक थी. इनमें  ‘मेक इन इंडिया’ से सरकार को ही नहीं, युवाओं को भी नौकरियों की बड़ी उम्मीद थी.

इसके लिए अनेक क्षेत्रों में विदेशी निवेश के लिए खोला गया, उनमें विदेशी निवेश की सीमा भी बढ़ायी गयी. पर जमीन पर मेक इन इंडिया नॉन स्टार्टर ही रही. स्टार्ट अप इंडिया से काफी उम्मीदें बनी थीं.

 

Narendra_Modi_launches_Make_in_India

 

मोदी सरकार ने इसके लिए 10 हजार करोड़ का भारी भरकम फंड भी मुहैया कराया. बताया गया कि इससे दस साल में 18 लाख रोजगार पैदा होंगे यानी 1.8 लाख सालाना.

बिजनेस अखबार ‘मिंट’ की जनवरी 2017 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस फंड में से एक धेला भी वितरित नहीं हो पाया है. सरकार के पास दिसंबर 2016 तक 1368 आवेदन आए, जिनमें 502 को स्टार्ट अप के योग्य माना गया. इनमें से 111 को टैक्स राहत के लिए योग्य माना गया. पर अंत में यह टैक्स लाभ केवल 8 स्टार्ट अप को प्रदान किये गए.

स्टैंड अप इंडिया में अनुसूचित जाति, जनजातियों और महिलाओं में उद्यमिता के माध्यम से रोजगार बढ़ाने की मुहिम थी. इससे एक करोड़ रुपए तक कर्ज की सुविधा थी. लक्ष्य था कि कम से कम राष्ट्रीयकृत बैंकों की हर शाखा ऐसा एक कर्ज अवश्य बांटेगी.

लेकिन जमीन पर इसका भी कोई असर नहीं दिखाई देता है है. स्किल इंडिया भी रोजगार मूलक योजना है जिसमें 2022 तक 40 करोड़ युवाओं को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य है. पर यह योजना भी अपने लक्ष्य से काफी पीछे है. इस योजना के कितने प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार मिला, यह बताने में मोदी सरकार के मंत्री कतराते हैं. सरकार की यह तमाम कोशिशें अब तक खंडहर ही साबित हुई हैं

.(साभार FP)

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