मालेगांव ब्लास्ट में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को जमानत मिलने की खबर टीवी से मिली.मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि प्रज्ञा ठाकुर को जमानत के लिए पांच लाख रुपये के मुचलके, इसी रकम के दो बॉन्ड और नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के पास अपना पासपोर्ट जमा कराना होगा.
भोपाल के एक अस्पताल में ढाई साल से भर्ती प्रज्ञा ठाकुर के डॉक्टरों का दावा है कि वो बेहद बीमार हैं.
प्रज्ञा ठाकुर भोपाल के पंडित खुशीलाल शर्मा शासकीय (स्वशासी) आयुर्वेदिक महाविद्यालय एवं संस्थान भोपाल में अपना इलाज करा रही हैं. कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर उमेश शुक्ला के अनुसार प्रज्ञा ठाकुर बिना व्हील चेयर के कहीं आ-जा नहीं सकतीं.
उनकी रीढ़ की हड्डी में समस्या है. शुक्ला के अनुसार प्रज्ञा ठाकुर को स्तन का कैंसर भी प्रारंभिक अवस्था में है. इसका इलाज भी संस्थान में चल रहा है.
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर अपनी बीमारी के इलाज के लिए कई महत्वपूर्ण चिकित्सा संस्थानों में चेकअप करा चुकी हैं. डॉक्टर शुक्ला को वो तारीख याद नहीं है जब प्रज्ञा ठाकुर को जेल से इस अस्पताल में लाया गया था. डॉक्टर शुक्ला के अनुसार वे लगभग ढाई साल पहले अस्पताल में आईं थीं.
मालेगांव में ब्लास्ट 29 सितंबर 2008 में हुआ था. ब्लास्ट के लिए बम को मोटर साईकिल में लगाया गया था. ब्लास्ट में आठ लोग मारे गए थे और 80 से अधिक लोग घायल हुए थे. प्रारंभ में घटना की जांच महाराष्ट्र पुलिस की एटीएस ने की थी. बाद में मामला जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया गया.
एनआईए ने अपनी जांच में यह पाया कि घटना की साजिश अप्रैल 2008 में भोपाल में रची गई थी. प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी भी एटीएस ने की थी. गिरफ्तारी का आधार ब्लास्ट में उपयोग की गई मोटर साईकिल थी. यह मोटर साईकिल प्रज्ञा ठाकुर के नाम रजिस्टर्ड थी. प्रज्ञा ठाकुर लगभग नौ साल से जेल में हैं.
मध्यप्रदेश के ही देवास में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक सुनील जोशी की हत्या में भी प्रज्ञा ठाकुर का नाम जोड़ा गया. प्रज्ञा ठाकुर इस मामले में बयान देने के लिए जब मुंबई से देवास लाई गईं थीं, तब उनकी हालत बेहद खराब थी. जज को उनके बयान उसी एंबुलेंस के पास जाकर लेना पड़े, जिससे वे कोर्ट लाई गईं थीं.
मालेगांव ब्लास्ट में गिरफ्तारी के बाद जेल में यातना देने के आरोप साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की ओर से लगाए गए थे. उनका आरोप था कि जेल में उन पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया गया. मासं खाने के लिए मजबूर किया गया.
पोर्न फिल्म देखने के लिए दबाव डाला गया. इस तरह के सनसनीखेज आरोपों के बाद ही साध्वी प्रज्ञा को अदालत ने भोपाल शिफ्ट कर दिया था.
मध्यप्रदेश में पली बढ़ी राजपूत परिवार से है
प्रज्ञा ठाकुर मध्य प्रदेश के चंबल इलाके में स्थित भिंड जिले में पली बढ़ीं. वे राजावत राजपूत हैं. उनके पिता आरएसएस के स्वयंसेवक और पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर थे.
इतिहास में पोस्ट ग्रैजुएट प्रज्ञा हमेशा से ही दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़ी रहीं. वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय सदस्य थीं और विश्व हिन्दू परिषद की महिला विंग दुर्गा वाहिनी से जुड़ी थीं.
वे कई बार अपने भड़काऊ भाषणों के लिए सुर्खियों में रहीं. 2002 में उन्होंने जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति बनाई. स्वामी अवधेशानंद गिरि के संपर्क में आने के बाद प्रज्ञा नए अवतार में नजर आईं. अवधेशानंद का राजीनितिक गलियारे में खासा प्रभाव था. इसके बाद उन्होंने एक राष्ट्रीय जागरण मंच बनाया और इस दौरान वह एमपी और गुजरात के एक शहर से दूसरे शहर जाती रहीं.
साध्वी का भाषण ऐसा होता था कि वह सभी को बांधे रखती थी. शुरुआत में उनके भाषण का असर भोपाल, देवास, इंदौर व जबलपुर तक ही सीमित रहा. बाद में अचानक उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद छोड़ दिया और वह साध्वी बन गई.
गांव-गांव जाकर हिन्दुत्व का प्रचार करने लगी. उन्होंने अपनी कार्यस्थली सूरत को बनाया और वहीं पर एक आश्रम भी बनवाया. हिन्दुत्व के प्रचार के कारण वह बीजेपी के नेताओं को प्रभावित करने लगी और राजनीति में उनका वर्चस्व बढ़ता गया.
मोदी सरकार बनने के बाद क्लीन चिट
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के प्रति एनआईए के रवैये में बदलाव केंद्र में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आया. इससे पहले यूपीए की सरकार ने इस मामले को भगवा आतंकवाद का चोला पहना दिया था.
एनआईए ने अपनी जांच के बाद 13 मई 2016 को दूसरी सप्लिमेंट्री चार्जशीट में मामले में मकोका लगाने का आधार नहीं होने की बात कह कर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सहित 6 लोगों के खिलाफ मुकदमा चलने लायक सबूत नहीं होने का दावा किया था.
जबकि कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित 10 लोगों के खिलाफ धमाके की साजिश, हत्या, हत्या की कोशिश, आर्म्स एक्ट, एक्सप्लोसिव एक्ट और यू.ए.पी.ए के तहत मुकदमा चलाने लायक सबूत होने का दावा किया था.