बोल पाने में अक्षम लोगों के दिमाग में चल रही बातों को लिखकर बताएगी यह मशीन, शोधकर्ताओं का दावा

कई बार पैरालिसिस के चलते लोगों की बोलने की क्षमता खत्म हो जाती है। ऐसे लोगों की जिंदगी काफी मुश्किल हो जाती है। अब एक नई स्टडी ने ऐसे लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण जगाई है। इस स्टडी में दावा किया गया है कि पैरालिसिस के शिकार व्यक्ति के दिमाग की तरंगों को वाक्य में बदला जा सकता है। इस स्टडी को ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस रेस्टोरेशन ऑफ आर्म एंड वॉयस ब्रावो नाम दिया गया है। यह स्टडी न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुई है। इसे सैन फ्रांसिस्को कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की टीम ने अंजाम दिया है। 

स्टडी में मिले हैं सकारात्मक परिणाम 
सैन फ्रांसिस्को कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इंजीनियर और स्टडी के मुख्य लेखक डेविड मोजेज ने इस स्टडी को उन लोगों के लिए बहुत काम का बताया है जो बोल पाने में अक्षम होते हैं। डेविड ने कहा कि इसमें इस बात के मजबूत संकेत मिले हैं कि गंभीर रूप से पैरालिसिस का शिकार लोगों को आवाज मिल सकती है। इस स्टडी के दौरान ऐसे व्यक्तियों पर शोध किया गया जिनके बोलने की क्षमता खत्म हो चुकी है। इनमें से एक 36 वर्षीय व्यक्ति था जो बीमारी के चलते बोलने की क्षमता खो चुका था। वहीं दूसरा एक 20 वर्षीय युवक था जो ऐसी ही समस्या से जूझ रहा था। गौरतलब है कि हर साल हजारों की संख्या में लोग दिमागी आघातों, हादसों बीमारियों और अन्य वजहों से अपनी बोलने की क्षमता खो चुके हैं। 

ऐसे अंजाम दी गई स्टडी 
स्टडी में ऐसे लोगों को शामिल किया गया जो अपना सिर, गर्दन या किसी अन्य अंग को हिला पाने में अक्षम थे। इनके सिर पर एक बॉस्केटबॉल कैपनुमा मशीन लगाई गई। फिर इसके बाद ब्रावो 1 स्पीच मोटर कॉटेक्स पर उच्च क्षमता वाला इलेक्ट्रॉड इंप्लांट किया गया। इससे पहले शोधकर्ताओं ने 50 शब्दों की एक डिक्शनरी तैयार की, जिसमें पानी, परिवार और अच्छा जैसे वो शब्द शामिल किए गए, जिन्हें लोग रोजाना की जिंदगी में इस्तेमाल करते हैं। इसके बाद उन्हें कुछ महीनों तक यह कोर्स कराया गया, जिसमें वो इन शब्दों के पैटर्न को समझने और उन्हें बोलने का अभ्यास करते रहे। इस दौरान इस शब्दकोश से दिए शब्दों से उनसे वाक्य बनवाए गए और इस प्रदर्शन को स्क्रीन पर रिकॉर्ड किया गया। 

अपने आप में पहली सफलता
इस दौरान उनसे प्रश्न पूछे गए, आप कैसे हैं, क्या आपको पानी चाहिए? इसके जवाब में उन्होंने ‘मैं ठीक हूं’और ‘नहीं मुझे प्यास नहीं लगी है’ जैसे जवाब दिए। शोध के मुताबिक यह सिस्टम 75 फीसदी एक्यूरेसी के साथ एक मिनट में 18 शब्दों को डिकोड कर सकता है। इसमें फोन की तरह ऑटोमेटिक करेक्शन फीचर भी शामिल है। इसके जरिए यह और अधिक प्रभावी हो जाता है। ब्रावो1 सह-लेखक के न्यूरोसर्जन एडवार्ड चैंग ने कहा, ‘हमारी जानकारी में यह अपने तरह का पहला प्रदर्शन है जो किसी एसे पैरालाइज्ड व्यक्ति की मष्तिष्क की गतिविधियों को सही ढंग से डिकोड करता है जो बोल नहीं सकता है।’

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