बिहार का आर्थिक विकास दर दो अंकों में बरकरार, कृषि क्षेत्र का इसमें सबसे बड़ा योगदान

एक ओर जहां राष्ट्रीय वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की दर में बीते कई सालों में गिरावट दर्ज हुई है, वहीं बिहार की आर्थिक विकास दर का दो अंकों में रहने का सिलसिला बरकरार है। इसका मुख्य कारण राज्य में तृतीयक क्षेत्र में शामिल सेक्टरों में अधिक वृद्धि दर का होना है। प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र के सेक्टरों में अपेक्षाकृत कम दर से वृद्धि हुई है। दो अंकों की विकास दर में सबसे बड़ा योगदान कृषि और उसके सहवर्ती क्षेत्रों का है। वर्ष 2019-20 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद में इस सेक्टर की 18.7 प्रतिशत हिस्सेदारी है। 

उद्यमिता क्षेत्र का 11.7 प्रतिशत योगदान रहा। जबकि पशुधन का एसजीडीपी में योगदान करीब छह प्रतिशत रहा। बिहार में दुग्ध उत्पादन में वर्ष 2015-16 से 2019-20 के बीच 6.07 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से बढ़ोत्तरी हुई। अधिसंरचना एवं संचार क्षेत्र का राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 10 प्रतिशत है। अन्य सेवाओं का योगदान 13.8 प्रतिशत और पथ परिवहन का योगदान 5.9 फीसदी है। सर्वेक्षण में यह उम्मीद जताई गई कि प्राथमिक क्षेत्र में क्षमता वृद्धि से राज्य को आगामी वर्षों में उच्च विकास दर दर्ज करने में मदद मिलेगी। 

आधारभूत संरचना और कृषि-पर्यावरण रहे प्राथमिकता
15वें आर्थिक सर्वेक्षण में जिस तरीके से राज्य की आर्थिक विकास दर में इजाफा हुआ है, उसमें बेहतर वित्तीय प्रबंधन मुख्य पहलू है। वहीं विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी खर्च की प्राथमिकताओं की बात करें तो इसमें सर्वाधिक जोर आधारभूत संरचना के विकास, सामाजिक परिक्षेत्र के साथ ही कृषि और पर्यावरण क्षेत्र में रहा है।
सरकार की प्राथमिकताओं को यदि पांच बिंदुओं में बांटकर देखें तो पहला बिंदु आर्थिक विकास दर का है। इसमें सरकार की राज्य के विकास के लिए प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है। इसके अलावा सड़क, बिजली, पानी जैसी आधारभूत संरचना पर खर्च किया गया है। सामाजिक परिक्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है। कृषि और पर्यावरण के क्षेत्र में बात करें तो अलग कृषि फीडर से कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया है। 
वहीं, जल- जीवन- हरियाली अभियान से हर खेत को पानी पहुंचाने के साथ ही पर्यावरण संतुलन पर ध्यान दिया गया है। वहीं, पांचवा बिंदु कोरोना काल में प्रवासियों के लिए किए गए काम से जुड़ा है। इसमें प्रवासियों के स्वास्थ्य, उनके खानपान से लेकर उनके रोजगार की भी चिंता की गई।

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