बनारस सहित पूरे पूर्वांचल में कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट का असर कमजोर हो गया है, लेकिन वायरस में नया वेरिएंट तो नहीं पनप रहा इस पर बीएचयू के माइक्रोबायोलोजी लैब में होल जीनोम सिक्वेंसिंग जांच चल रही है। जांच में बनारस सहित आसपास के जिलों के पांच फीसदी सैंपल लिए गए हैं।
कोरोना की दूसरी लहर में बनारस सहित आस-पास के जिलों में वायरस के सबसे खतरनाक सात वेरिएंट पाए गए थे, जिनमें कापा, अल्फा, बीटा और डेल्टा प्रमुख थे। सबसे ज्यादा तबाही डेल्टा वेरिएंट से हुई थी।
कुल संक्रमित लोगों में से 36 फीसदी में वायरस का यह प्रकार पाया गया था। इस कारण स्वास्थ्य टीम को आशंका है कि कोरोना वायरस कोई दूसरा रूप तो नहीं बदल रहा है। बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान (आईएमएस) के एमआरयू लैब की नोडल अफसर प्रो. रोयना सिंह ने बताया कि नए वेरिएंट को देखने के लिए हम लोग प्रत्येक 100 सैंपल पर 5 सैंपल की होल जिनोम सिक्वेंसिंग कर रहे हैं।
इससे हम ये पता लगाने में जुटे हैं कि वायरस का कोई नया वेरिएंट तो नहीं आ गया है। जीनोम सिक्वेंसिंग जांच महंगी होती है। एक सैंपल की जांच करने में कम से 10 हजार रुपए खर्च आता है। इस कारण पांच फीसदी सैंपल पर इसकी जांच की जा रही है।
सीडीआरआई भेजे गए बनारस से 75 सैंपल
केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) लखनऊ में बीएचयू से 75 सैंपल बनारस और 81 सैंपल सोनभद्र से भेजे गए हैं। वहां पर भी इस सैंपल की जांच की जाएगी। इसमें यह देखा जाएगा कि कोरोना वायरस का कोई नय वेरिएंट तो नहीं उत्पन्न हो रहा है।
क्या है जीनोम सिक्वेसिंग
पहले सैंपल लेकर उसमें से आरएनए निकालते हैं। फिर आरटी-पीसीआर मशीन में रखते हैं। इसके बाद में जीन में बदलाव के लिए नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेसिंग (एनजीएस) के जरिए रंग व अन्य लक्षणों के आधार पर स्ट्रेन का पता लगाते हैं।
आसान शब्दों में कहा जाए तो जीनोम सिक्वेसिंग एक तरह से वायरस का बायोडाटा होता है। वायरस किस तरह का है, किस तरह का दिखता है। इनकी जानकारी हमें जीनोम के जरिए मिलती है। वायरस के विशाल समूह को जीनोम कहा जाता है। वायरस के बारे में जानने की विधि को जीनोम सीक्वेंसिंग कहते हैं।