सोमवार गांधी जयंती को को चंद्रशेखर नगर स्थित अपने आवास पर उन्होंने मीडिया के सामने बसपा से नाता तोड़ते हुए बसपा को प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह काम करने वाली पार्टी वताया।
उन्होंने बताया कि समीक्षा बैठक में उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती से आग्रह किया था कि पार्टी के कार्यकर्ता तो सिंबल देखकर निष्ठापूर्वक मतदान कर रहे लेकिन, कोऑर्डिनेटर किसी प्राइवेट कंपनी की तरह काम करते हैं। उन्होंने इसे सुधार करने का आश्वासन दिया था परंतु बाद की बैठकों में पुरानी व्यवस्था को ही उन्होंने कायम रखा। पूर्व मंत्री ने कहा कि बसपा के अंदर वह घुटन महसूस कर रहे थे।
छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र व मुलायम सिंह यादव को अपना आदर्श बताते हुए नारद राय ने कहा कि इन दो महान नेताओं के सानिध्य में रहकर संघर्ष किया और उसी के बल पर राजनीति में मुकाम हासिल किया। दूसरी ओर बसपा में अपनी बात रखने या संघर्ष करने की स्पष्ट मनाही थी। ऐसे में हमारे जैसा नेता वहां घुटन महसूस कर रहा था। कहा कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कुछ कारणों से सपा छोड़कर बसपा में आया था। ‘बहन जी’ ने हमें बलिया नगर विधानसभा सीट से हमें अपना उम्मीदवार बनाया तथा वोट की अपील करने यहां तक आयीं, इसके लिए उनका आभारी हूं। कहा कि पूरे दम-खम से चुनाव लड़ा। हालांकि परिणाम हमारे पक्ष में नहीं रहा।
नारद राय बलिया में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर अपने समाजवादी साथी से बहुत पीछे छूट गए थे।तभी से राय की सियासी भविष्य संकट में पडा है।अब देखना है कि आगे किस पार्टी का दामन थामते है।