यह एक विचित्र छवि है- नारंगी पोशाक में सिर मुंडाए बौद्ध भिक्षुओं का एक समूह एक एग्जेक्युटिव जेट में सवार है. ये आपस में लग्ज़री सामान एक-दूसरे को ले-दे रहे हैं.
बौद्ध भिक्षुओं का यह वीडियो 2013 में यूट्यूब पर पोस्ट किया गया था. यह वीडियो अब वायरल हो गया है.
बौद्ध भिक्षु बनने से पहले इस शख़्स का नाम विरापोल सुकफोल था और अब उन्हें इसी नाम से जाना जा रहा है. थाईलैंड के डिपार्टमेंट ऑफ स्पेशल इन्वेस्टिगेशन (डीएसआई) ने बौद्ध भिक्षु की इस विलासितापूर्ण जीवनशैली का पर्दाफाश किया है.
इस बौद्ध भिक्षु के 10 बैंक खातों से कम से कम 38 करोड़ 67 लाख रुपए (6 मिलियन डॉलर) मिले हैं. इनके पास 28 मर्सेडीज बेंज़ कारें हैं. विरापोल ने दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया में एक हवेली बना रखी है.
इसके अलावा थाईलैंड के उबोन रत्चाथानी शहर में एक बड़ी और भव्य हवेली है. इन्होंने बैंकॉक के रॉयल पैलेस में बुद्ध की एक विशाल मूर्ति भी बनवाई है. इसके बारे में उन्होंने दावा किया था कि इसमें नौ टन सोना लगा है, हालाँकि बाद में यह दावा झूठा साबित हुआ था.
डीएसआई के मुताबिक इसके सबूत भी मिले हैं कि विरापोल के कई महिलाओं से यौन संबंध हैं. एक महिला का दावा है कि विरापोल से उनका एक बच्चा हुआ है. महिला के मुताबिक जब वह 15 साल की थीं तब विरापोल के बच्चे की मां बनी थीं. डीएसआई का कहना है कि डीएनए विश्लेषण इस दावे के पक्ष में है.
विरापोल अमरीका फरार हो गए थे. थाईलैंड के अधिकारियों को उन्हें वापस लाने में चार साल लग गए. विरापोल ने धोखाधड़ी के आपराधिक मामले, हवाला और रेप जैसे संगीन आरोपों से इनकार किया है.
बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार
आख़िर एक बौद्ध भिक्षु 20 साल की उम्र में इतना ताक़तवर कैसे हो गया? आख़िर उस बौद्ध भिक्षु को बौद्ध नियम और अनुशासन का उल्लंघन करने की अनुमति कैसे मिली? यहां तक कि बौद्ध भिक्षु के लिए पैसे छूने तक की मनाही है. यौन संबंध बनाने पर तो कड़ाई से पाबंदी है.
थाईलैंड में बौद्ध भिक्षुओं के पतन की कहानी कोई नई नहीं है. आधुनिक जीवन के लालच में बौद्ध भिक्षुओं के अनुचित धन-बल हासिल करने के कई उदाहरण हैं. ये बौद्ध भिक्षु ड्रग्स लेते हैं, डांस करते हैं और महिलाओं, पुरुषों, लड़कियों और लड़कों से यौन संबंध बनाते हैं.
यहां ऐसे बौद्ध मंदिर भी हैं जहां बड़ी संख्या में समर्पित अनुयायी पहुंचते हैं. यहां इन्हें कई चमत्कारी भिक्षु और महंतों का साथ मिलता है जिनके पास अलौकिक शक्ति होने की बात कही जाती है. थाईलैंड के आधुनिक जीवन में दो पहलू साफ़ दिखते हैं.
शहरी थाई नागरिकों में आध्यात्मिक राहत हासिल करने की तड़प है. इनका गांव के पारंपरिक मंदिर से कोई क़रीबी का संबंध नहीं है. इनका मानना है कि दिल खोलकर ताक़तवर मंदिरों को दान करने से उन्हें कामयाबी और भौतिक सुख-सुविधा की प्राप्ति होगी.
विरापोल इसी चलन के दुष्चक्र में फंस गए. 2000 के दशक की शुरुआत में विरापोल हाशिए के पूर्वी प्रांत सिसाकेट से आए थे. इन्होंने एक मठ की स्थापना के लिए गांव की ज़मीन दान में दे दी. सब-डिस्ट्रिक्ट प्रमुख इट्टिपोल नोंथा के मुताबिक कुछ स्थानीय लोग उनके मंदिर गए और उन्होंने दया भाव दिखाते हुए दान की पेशकश की.
इसके बाद विरापोल ने बड़े समारोहों का आयोजन शुरू कर दिया. वह ताबीज़ बेचने लगे और देश अन्य हिस्सों से धनी लोगों को आकर्षित करने के लिए बुद्ध की पन्ने की एक विशाल मूर्ति बनवाई. विरापोल के भक्तों ने उनके बारे में कई तरह के भ्रम को फैलाना शुरू किया.
ख़ासकर उनकी कोमलता, अच्छी आवाज़ उनमें कथित अलौकिक शक्ति का प्रचार किया गया. विरापोल के भक्तों ने प्रचारित किया कि वह पानी पर चलते हैं और देवताओं से बात करते हैं. इन प्रचारों से विरापोल की लोकप्रियता दूर-दूर तक बढ़ने लगी.
इन्हें कई कारें उपहार स्वरूप मिलीं. यहां तक कि आज भी उनके समर्थकों की कमी नहीं है. इनका कहना है कि वह दिल से एक नेक इंसान हैं और दान में मिली बेशुमार संपत्ति से आनंदमय जीवन जी रहे हैं.
कंलक की लंबी फ़ेहरिस्त
बौद्ध आचार-व्यवहार में बढ़ते पाखंड के कारण अब थाईलैंड में लोग खुले तौर पर बौद्ध धर्म पर संकट की बात कर रहे हैं. हाल के वर्षों में विधिवत रूप से बौद्ध भिक्षु बनने वालों की संख्या में लगातार गिरावट आई है. गांव के छोटे मंदिरों को वित्तीय मदद मिलनी भी बंद हो गई है.
बौद्ध पुरोहित वर्गों को सुप्रीम संघ काउंसिल नियंत्रित करता है लेकिन इसमें बुजुर्ग बौद्ध भिक्षु भरे हुए हैं. पिछले एक दशक से इस काउंसिल का कोई मुखिया तक नहीं है. इससे इसकी अप्रासंगिकता ही साबित होती है. नेशनल ऑफिस ऑफ़ बुद्धिज़्म भी धर्म के नियमन का काम करता है, लेकिन यह भी नेतृत्व के संकट से जूझ रहा है और इस पर वित्तीय अनियमितता के आरोप हैं.
सरकार ने अब मंदिरों से जुड़े ज़रूरी क़ानून को पास किया है. मंदिरों को हर साल दान में मिलने वाली करोड़ों की रकम जमा की जाएगी और साथ ही सारे वित्तीय रिकॉर्ड को सार्वजनिक करना होगा. इसके साथ ही हर बौद्ध भिक्षु को एक डिजिटल आईडी कार्ड देने की बात कही जा रही है. इस डिजिटल कार्ड के ज़रिए बौद्ध भिक्षुओं पर नज़र रखी जाएगी.