इसे कहते हैं पानी में रहकर प्यासे रहना। बिहार में नदियों के किनारे बसे पटना, नालंदा व भागलपुर सहित 11 जिले जलसंकट वाले क्षेत्रों की श्रेणी में आ गए हैं। पीएचईडी ने जलस्तर पर राज्यभर में जो सर्वे कराया है, उसकी रिपोर्ट चिंताजनक है। बताया जा रहा है कि पटना सहित राज्य के आठ जिलों में जलस्तर पिछले साल की तुलना में काफी नीचे आया है। 11 जिले वाटर स्ट्रेस्ड की श्रेणी में आ गये हैं। कुछ अन्य जिलों में भी स्थिति चिंताजनक है। हालांकि गंडक बेल्ट के जिले कुछ हद तक ठीक स्थिति में हैं।
पीएचईडी विभाग के सचिव जितेंद्र श्रीवास्तव ने सूबे के सभी जिलों की पंचायतवार वाटर लेबल पर सर्वे रिपोर्ट जारी की है। इसमें बताया है कि कई जिलों में जलस्तर इतना नीचे आया है कि गर्मी में भीषण जलसंकट की समस्या खड़ी हो सकती है। विभाग ने अपने सर्वे रिपोर्ट में बताया है कि 15 फरवरी तक कराये गए सर्वे के मुताबिक राज्य के अरवल, भभुआ, भागलपुर, बांका, समस्तीपुर, पटना, भोजपुर व बक्सर में जलस्तर पिछले साल की तुलना कहीं अधिक गिरा है। इन जिलों में जलसंकट वाली पंचायतों की पहचान व अग्रिम कार्रवाई जरूरी है। इसके लिए विभाग ने अधिकारियों को साधारण चापाकल को इंडिया मार्का चापाकल में बदलने व जहां इंडिया मार्का चापाकल लगे हैं, उनके पाइप बढ़ाने के निर्देश दिये हैं। सचिव ने कहा है कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, जो इन जिलों में भीषण संकट की स्थिति पैदा हो सकती है।
सबसे खतरनाक स्थिति में तीन जिले की 17 पंचायतें
विभाग ने बताया है कि सूबे की 498 पंचायत जलस्तर के मामले में संवेदनशील स्थिति में हैं। विभाग ने इसके लिए सभी पंचायतों को पांच श्रेणी में बांटा है। श्रेणी ए में वो पंचायतें हैं, जिनका जलस्तर 50 फीट व उससे नीचे है। बी श्रेणी में वो पंचायतें हैं, जिनका जलस्तर 40 से 50 फीट के बीच है, सी श्रेणी में वो पंचायतें हैं, जिनका जलसतर 30 से 40 के बीच है, डी श्रेणी में 20 से 30 फीट व ई श्रेणी में जलस्तर 20 फीट तक है। सर्वे में पाया गया है कि ए श्रेणी में राज्य की कुल 17 पंचायतें हैं। इनमें आठ पंचायत कैमूर की, चार पंचायत भागलपुर की, चार पंचायत मुंगेर की व व एक पंचायत रोहतास की शामिल हैं।
इन जिलों में भी चिंताजनक स्थिति
इसके अलावा विभाग ने 25 फीट या उससे अधिक नीचे के जलस्तर वाली पंचायतों की स्थिति को चिंताजनक यानि वाटर स्ट्रेस्ड स्थलों के रूप में चिन्हित किया है। इस दायरे में ए श्रेणी में आने वाली 17 पंचायतों के अलावा बी श्रेणी की 54 पंचायतें व सी श्रेणी की 427 पंचायतें शामिल हैं। वैसे समग्र रिपोर्ट को देखें तो विभाग ने राज्य के कुल 8386 पंचायतों का विश्लेषण किया है। इनमें ए श्रेणी में 17, बी श्रेणी में 54, सी श्रेणी में 427, डी श्रेणी में 1937 व ई श्रेणी में 5951 पंचायतें आती हैं। विभाग ने ए, बी व सी श्रेणी को वाटर स्ट्रेस्ड पंचायत के रूप में चिह्नित करते हुए संबंधित जिलों के अधिकारी को कार्रवाई का आदेश दिया है।
नालंदा, समस्तीपुर व पटना की कई पंचायतें जलसंकट से घिरीं:
बेन प्रखंड की आंत, अरावन, बेन व बारा, बिहारशरीफ प्रखंड की पालटपुरा, मघरा, पचौरी, बियावानी, गिरयक प्रखंड की चोरसुआ, पायनेपुर, राजगीर प्रखंड की भूई, सिलाव प्रखंड की धरहारा, कुल फतेहपुर व मसौढ़ी के नाम शामिल हैं। समस्तीपुर: इस जिले की दो पंचायतें इस श्रेणी में पायी गई हैं जिनमें उजियारपुर प्रखंड की चंदचौर मध्य व निकासपुर, पटना जिले में मोकामा प्रखंड की हथदह बुजुर्ग, कन्हाईपुर, मराची दक्षिण, नवरंज जलालपुर व शिवनार पंचायतें शामिल हैं। वहीं पटना सदर की फतेहपुर, पुनाडीह, महुली, सबलपुर को भी संवेदनशील पाया गया है। इनके अलावा पटना के धनौरा व मसौढ़ी की भी कुछ पंचायतें शामिल हैं, जिनका जलस्तर 30 से 40 फीट के बीच पाया गया है। विभाग का मानना है कि 25 फीट से जलस्तर जैसे ही नीचे जाता है, जलसंकट की आशंका पैदा हो जाती है।
मुजफ्फरपुर, चंपारण, सीतामढ़ी, गोपालगंज में बाढ़ से वाटर रिचार्ज
रिपोर्ट में गंडक बेल्ट में स्थित जिलों की स्थिति जलस्तर के मामले में सामान्य बतायी गई है। मुजफ्फरपुर में 50 फीट से लेकर 30 फीट वाले जलस्तर की श्रेणी में कोई पंचायत नहीं बताया गया है। वहीं 20 फीट से 30 फीट की श्रेणी में मुजफ्फरपुर में कुल 48 पंचायतें आती हैं, वहीं वैशाली में इस श्रेणी आने वाले पंचायतों की संख्या चार बतायी गई है। पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, गोपालगंज व सारण में स्थिति सामान्य पायी गई है। वाटर स्ट्रेस्ड पंचायतों की श्रेणी में इन जिलों की कोई पंचायत नहीं आ रही है। इसका एक बड़ा कारण बताया जा रहा है कि गत साल यहां आयी भीषण बाढ़ के कारण जलस्तर में जबरदस्त सुधार हुआ है। जिन इलाकों में बाढ़ का पानी फैला था, वहां वॉटर स्ट्रेस्ड श्रेणी में एक भी पंचायत के नहीं आने से विभाग ने राहत की सांस ली है। जहां कम वर्षापात रिकार्ड किया गया, व नदियों में उफान कम आया, रिपोर्ट में वहां की स्थिति चिंताजनक बतायी गई है।
नदियों को अविरल बहने देने से घटेगी समस्या:
इस संबंध में पर्यावरणविद व नंदीग्राम डायरी के लेखक पुष्पराज ने बताया कि अधिकारियों की टीम समस्या को तलाश लेती है, लेकिन इनके निदान के लिए विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों की राय नहीं ली जाती। जल जीवन हरियाली पर के लिए 24524 करोड़ का प्रावधान है, लेकिन इसे वैज्ञानिक तरीके से क्रियान्वित करने की जरूरत है। हम एक तरफ पेड़ों को काट रहे है, दूसरी तरफ पानी की सप्लाई कर रहे हैँ व इसके ठीक विपरीत बोरवेल पर कोई प्रतिबंधि या नियंत्रण नहीं लगा रहे, तालाबों का सौंदर्यीकरण के नाम पर पक्कीकरण कर रहे हैं। गंगा की जलग्रहण क्षमता इतनी कम हुई है कि इसके किनारे बसे शहरों में भी जल संकट का प्रभाव दिख रहा है। एक पेड़ हमें साल में 400 किग्रा ऑक्सीजन देता है, वहीं दो हजार किलो कार्बन सोखता है। एक परिवार यदि अपने आसपास 10 पेड़ लगाये तो परिवार की औसत आयु सात वर्ष बढ़ जाती है, जलस्तर पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। जिस तेजी से कानूनी व गैर कानूनी तरीके से पेड़ों को साफ किया जा रहा है, नदियों के गाद की सफाई नहीं हो रही, आहर पईन का अस्तित्व मिट रहा है, तालाब कुओं का पक्कीकरण हो रहा है, उसमें स्थिति आज से और भयावह होगी। जल विशेषज्ञ डॉ. डीके मिश्रा नमामी गंगे प्रोजेक्ट में भी है जिनके अनुसार नदियों को अविरल बहने देना व प्राकृतिक जल स्रोतों को मूल रूप में रहने देने से ही भूगर्भ जल समस्या का निदान होगा।