कोरोना की दूसरी लहर के बाद पावरलूम उद्योग ठप हो गया है। पिछले तीन माह से नये आर्डर न मिलने से करीब 50 फैक्ट्रियां बंद चल रही है। जिन फैक्ट्रियों में काम हो रहा है। वहां बमुश्किल एक शिफ्ट में कारीगर काम कर रहे हैं। कारोबारियों के मुताबिक हर महीने बिजली बिल जमा करना पड़ता है। आर्थिक तंगी से परेशान कई लोगों ने कनेक्शन कटवा दिया और अपनी मशीने तक बेच दी है। हालत यह है कि दूसरों को रोजगार देने वाले आज खुद बेरोजगारी की कगार पर खड़े हैं।
राजधानी के रहीमाबाद, मुसीबतगंज सहित हरदोई रोड पर करीब 60 पावरलूम फैक्ट्रियां थी। इसमें ड्रेसिंग पट्टी, बकरम सहित अन्य सामान बनकर संडीला जाता था। पिछले साल जब लॉकडाउन लगा तो चार महीने बाद फैक्ट्रियां चालू हो गई थी, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के बाद से अधिकांश फैक्ट्रियां बंद है। मुसीबतगंज निवासी जाकिर अंसारी ने बताया कि वह 35 वर्षों से धागे की पट्टी बनाने काम कर रहे हैं, लेकिन कोरोना कर्फ्यू के बाद से काम पूरी तरह से बंद हो गया है। उन्होंने बताया कि यहां से माल बनकर संडीला जाता है, लेकिन पिछले तीन महीने से नये आर्डर नहीं मिल रहें है। स्थानीय निवासी नसरत अली, मोहम्मद हसीब ने बताया कि कॉटन का धागा 250-280 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि पहले यह 200 रुपये प्रतिकिलो मिलता था।
कारोबारियों से बातचीत-
कुरबान अली ने बताया कि दो साल पहले तक बहुत अच्छा काम चलता था, लेकिन कोरोना महामारी के बाद पावरलूम सेक्टर को व्यापक आर्थिक तंगी झेलनी पड़ रही है। इस व्यवसाय से जुड़े हुए कई परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गये हैं।
मेराज अंसारी का कहना है कि कोरोना महामारी के बाद कई पावरलूम फैक्ट्रियां बंद हो चुकी है। कई लोगों ने मजबूरी में अपनी मशीने बेच दी। जो कुछ फैक्ट्रियां चल रही है। उनमें बहुत कम काम हो रहा है।
करामत अली ने बताया कि संडीला औद्योगिक क्षेत्र से यहां के कारोबारियों को आर्डर मिलते थे लेकिन पिछले दो-तीन महीने से बिल्कुल काम नहीं मिल रहा है। मजबूरी में लोग खेती-किसानी कर रहे हैं।
मोहम्मद अफजल ने कहा कि बिजली विभाग की फ्लैट रेट योजना समाप्त होने के बाद फैक्ट्री मालिकों को मीटर रीडिंग के हिसाब से बिल जमा करना पड़ रहा है। मजबूरी में लोगों ने फैक्ट्रियां बंद कर दी है।