‘कहते हैं कि गालिब का अंदाज-ए-बयां और …’

हर साल 27 दिसंबर को गालिब एक बरस और बूढ़े हो जाते हैं। लेकिन उनकी शायरी पसंद करने वालों के लिए वो हर बरस जवान ही होते हैं। इसी दौर में कुछ ऐसे भी हैं, जो gaalib_1482821896शेर की टांग तोड़ते हैं, तो कोई कमर। यानी शेर उठने के काबिल न रहे। गालिब होते तो इस दुर्गति पर यही तो कहते,

219 साल पहले आज ही के दिन आगरा में अब्दुल्लाह बेग के घर एक लड़का पैदा हुआ, जो बाद में असदुल्लाह, नौशा मियां और फिर गालिब के नाम से मशहूर हुआ लेकिन गालिब अगर अपने बारे में कहते तो शायद ‘मशहूर’ की जगह ‘बदनाम’ शब्द का इस्तेमाल करते। आज गालिब हमें इसलिए याद आ गए कि हमारे जमाने में हर चीज के लिए दिन मुकर्रर कर दिया गया है और शायद हमारे खमीर (डीएनए) में भी यही है।

गालिब हमारे दौर के हैं या हम उनके जमाने से आगे नहीं निकल पाए हैं, यह कहना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि गालिब ने भी तो कहा था कि हर चीज के लिए संदर्भ होता है।

अगर गालिब अभी जिंदा होते, तो अपनी 219वीं वर्षगांठ मना रहे होते और फिर बड़ा नाज उठवाते। और यह शेर शायद उन्होंने इसीलिए कहा था।

खैर गालिब हर किसी के लिए अपने मायने रखते हैं। हम कौन होते हैं किसी की सोच बदलने वाले। लेकिन गालिब बहुत अजीब हैं। उनके यहां विरोधाभास इतना है कि सबके लिए गुंजाइश है। वह अपनी भी सराहना से नहीं चूकते लेकिन बुराई के रूप में। या फिर अगर करेंगे भी तो लोगों की जबान से। आज हमें सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा जो शेर नजर आया वह था।

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