उत्तराखंड विधानसभा में एग्जिट पोल के नतीजों में बीजेपी को जीत मिलती नजर आ रही है. ऐसे में पार्टी नेताओं के बीच सीएम बनने की होड़ भी दिखाई देने लगी है. ये खास इसलिए भी क्योंकि सीएम को लेकर उत्तराखंड का इतिहास थोड़ा अलग ही रहा. सरकार कांग्रेस की बने या बीजेपी की, जब सीएम बनने का नंबर आता है, माथापच्ची हर तरफ होती है. हालांकि इस बार कांग्रेस की स्थिति एकदम साफ है. कांग्रेस जीती तो सीएम फिर से हरीश रावत बनेंगे. जबकि बीजेपी की सरकार आती है केंद्रीय नेतृत्व के लिए फैसला लेना थोड़ा मुश्किल होगा.
उत्तराखंड में बीजेपी के पास चार ऐसे चेहरे हैं जो सीएम पद की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं. हालांकि फिलहाल सांसद हैं. लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलने का तोहफा उन्हें सीएम पद के रूप में भी दिया जा सकता है.
भुवन चंद्र खंडूरी- 2007 में उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार बनी. हालांकि पहले रमेश पोखरियाल निशंक को सीएम बनाया गया. लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने के बाद उन्हें हटा दिया गया. इसके बाद सेना में रहे खंडूरी सीएम बनाए गए और उनकी साफ छवि के साथ बीजेपी ने 2012 का चुनाव लड़ा.
विजय बहुगुणा भी खुद को मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में मानकर चल रहे हैं. पिछली बार कांग्रेस की सरकार आने पर बहुगुणा सीएम बने थे. अब बहुगुणा बीजेपी में हैं.
सतपाल महाराज के सत्संग पूरे देश में देखे-सुने जाते हैं. हालांकि तमाम राजनीतिक करियर कांग्रेस के साथ रहकर गुजरा. 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ थे और सीएम उम्मीदवार की रेस में काफी आगे. फिलहाल बीजेपी के साथ हैं और सीएम बनने के प्रबल दावेदारों में इस बार भी हैं. सतपाल चौबट्टाखाल से चुनाव लड़े हैं.
इन नेताओं के अलावा त्रिवेंद्र सिंह रावत, अजय भट्ट के साथ धन सिंह रावत भी अंदरखाने सीएम बनने के लिए पैरवी कर रहे हैं. यशपाल आर्य भी इस दौड़ में शामिल माने जा रहे हैं. चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए. उत्तराखंड में सबसे बड़े दलित नेता के रूप में उनकी पहचान है. हरक सिंह रावत भी कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हैं. राज्य के बड़े नेताओं में उनका शुमार है.
बीजेपी को बहुमत मिलने की स्थिति में हाईकमान जिस नाम का ऐलान कर देगा, विधायकों को उसके साथ खड़ा होना पड़ेगा.
रमेश पोखरियाल निशंक उत्तराखंड के सीएम रह चुके हैं. केंद्रीय नेतृत्व में उनका अच्छा दखल माना जाता है.