अब रासुका पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा चाबुक

हाल में राजद्रोह कानून पर सरकार को झटका देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अब रासुका के तहत गिरफ्तार मणिपुर के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता को फौरन रिहा करने का निर्देश देकर एक बार फिर सरकार को झटका दिया है.सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने नई दिल्ली स्थित सर्वोच्च अदालत से इस मामले की सुनवाई एक दिन टालने का अनुरोध किया था. लेकिन अदालत ने कहा कि अब लिचोम्बम को जेल में रखना उनकी स्वतंत्रता और जीने के अधिकार का उल्लंघन है. मणिपुर के कार्यकर्ता एरेंड्रो लिचोम्बम को स्थानीय पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम के साथ महज इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया था कि उन्होंने प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की मौत के बाद फेसबुक पोस्ट में टिप्पणी कर दी थी कि गोमूत्र और गोबर कोरोना का उपचार नहीं है. मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जारी रहेगी. क्या है मामला? मणिपुर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष प्रोफेसर टिकेंद्र सिंह की इस साल मई में कोरोना से मौत हो गई थी. उसके बाद राजनीतिक कार्यकर्ता एरेंड्रो लिचोम्बम ने 13 मई को अपनी एक पोस्ट में लिखा था कि कोरोना का इलाज गोबर और गोमूत्र नहीं है. इलाज विज्ञान और सामान्य ज्ञान है प्रोफेसर जी आरआईपी. दरअसल, बीजेपी के तमाम नेता गोबर और गोमूत्र को कोरोना का इलाज बता रहे थे. इसी तरह स्थानीय पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था, “गोबर और गोमूत्र काम नहीं आया. यह दलील निराधार है. कल मैं मछली खाऊंगा.” इसके बाद प्रदेश बीजेपी उपाध्यक्ष उषाम देबन और महासचिव पी. प्रेमानंद मीतेई ने इन दोनों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. उसके आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत उनको गिरफ्तार कर लिया. वैसे, पत्रकार किशोर चंद्र और लिचोम्बम को पहले भी उनको दो बार कथित आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया जा चुका है. मणिपुर की एक अदालत ने 17 मई को इन दोनों को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था. लेकिन उनके एडवोकेट विक्टर चोंग्थाम के मुताबिक, पुलिस हिरासत से रिहाई के कागजात तैयार करने से पहले ही सरकार ने उन दोनों पर रासुका लगाने का फैसला कर लिया. उसके बाद दोनों को हिरासत में जेल भेज दिया गया. सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानवाधिकार कार्यकर्ता लिचोम्बम के पिता एल रघुमणि सिंह ने रासुका के तहत अपने पुत्र की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इसमें उन्होंने दलील दी थी कि उनके पुत्र का अपराध रासुका के दायरे में नहीं आता. महज इसलिए रासुका लगाया गया ताकि वे जमानत पर रिहा नहीं हो सके. सिंह का कहना था कि निजी खुन्नस के कारण ऐसा किया गया. सोमवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील सदन फरसत की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा, “हम इस व्यक्ति को एक दिन के लिए भी हिरासत में रखने की अनुमति नहीं दे सकते. लिचोम्बम की लगातार हिरासत अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीने के अधिकार का उल्लंघन करती है.” सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से इस मामले की सुनवाई मंगलवार को करने की अपील की थी. लेकिन अदालत ने साफ कर दिया कि वह सोमवार को ही उसकी रिहाई का आदेश पारित करेगी. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का कहना था कि वह (लिचोम्बम ) इसके लिए रात भर जेल में नहीं रह सकते. याचिकाकर्ता के वकील सदन ने कहा कि वह अगली सुनवाई पर मुआवजे के लिए दबाव डालेंगे. वह कहते हैं, “लिचोम्बम की तत्काल रिहाई का आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट प्रथम दृष्टया हमारी इस दलील से सहमत है कि यह ऐसा मामला नहीं था जहां रासुका का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था.” राजद्रोह कानून पर टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने हाल में राजद्रोह कानून के औचित्य पर सवाल उठाते हुए सरकार पर कड़ी टिप्पणी की थी. कानून के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताते हुए अदालत ने केंद्र से सवाल किया था कि स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने की खातिर ब्रिटिश शासनकाल में इस्तेमाल किए गए प्रावधान को खत्म क्यों नहीं किया जा रहा? कोर्ट ने यह टिप्पणी धारा 124-ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक पूर्व मेजर जनरल और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिकाओं को सुनते हुए की थी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज राजद्रोह का मामला रद्द करने का आदेश दिया था. वैसे, राजद्रोह के मामले में हुई गिरफ्तारियों और इस कानून के तहत दोषी करार दिए गए लोगों की तादाद में भारी अंतर से भी कई सवाल खड़े होते रहे हैं. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2019 के बीच राजद्रोह कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए. इनमें से सबसे ज्यादा 54 मामले असम में दर्ज किए गए. इन मामलों में से 141 में आरोपपत्र दायर किए गए जबकि छह साल की अवधि के दौरान इसके तहत गिरफ्तार महज छह लोगों को ही दोषी ठहराया गया. गृह मंत्रालय ने अब तक 2020 के आंकड़े जारी नहीं किए हैं. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में राजद्रोह के सबसे ज्यादा 93 मामले वर्ष 2019 के दौरान दर्ज किए गए. एक राजनीतिक विश्लेषक एल. देवेंद्र सिंह कहते हैं, “असहमति की आवाजों को दबाने के लिए राजद्रोह और रासुका के प्रावधान अब सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के सबसे बड़े हथियार बन गए हैं. देर से ही सही, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में ठोस पहल करते हुए सरकार की आंखें खोलने का प्रयास किया है.”

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com