परिसंपत्तियों के बंटवारे का विवाद तभी से चला आ रहा है, जबसे उत्तराखंड अलग राज्य बना है। इतने वर्षों में दोनों ही प्रदेशों में विभिन्न दलों की सरकारें बनीं, लेकिन विवाद समाप्त करने में किसी ने रुचि नहीं दिखाई। इधर हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में दोनों ही राज्यों में भाजपा की सरकारें बनी हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ खुद भी उत्तराखंड से वास्ता रखते हैं।
राज्य बनने से पूर्व उत्तराखंड की कई कोऑपरेटिव सोसाइटी को लगभग पचास करोड़ का लोन दिया गया था, जिसकी वसूली का भी विवाद है। इसके अलावा राज्य गठन से पूर्व उत्तरकाशी जिले में मनेरी भाली जल परियोजना की स्थापना के लिए एलआईसी से करीब 140 करोड़ रुपये का लोन लिया गया था।
मगर इस राशि का इस्तेमाल अन्य मदों में कर लिया गया। स्वतंत्र राज्य बनने के बाद एलआईसी ने उत्तराखंड से यह पैसा मांगना शुरू कर दिया। यहां से कई बार यह जवाब दिया गया कि उत्तर प्रदेश से यह रकम वसूल की जाए, लेकिन यह विवाद अभी बना हुआ है और कर्ज की राशि बढ़कर दो सौ करोड़ के पार हो चुकी है। उधर आवास विकास की तमाम ऐसी संपत्तियां उत्तराखंड में बनी हुई हैं, जिनके नक्शे पास करने से लेकर विभिन्न प्रकार की अनुमति देने का अधिकार अभी भी उत्तर प्रदेश के पास है।
इसी तरह हरिद्वार के होटल अलकनंदा और डाम कोठी के पास स्थित तमाम संपत्तियों का मालिकाना अधिकार उत्तर प्रदेश के पास ही है। ऐसे तमाम विवादों को लेकर सोमवार की बैठक बेहद अहम है। माना जा रहा है कि ज्यादातर विवादों का निपटारा बैठक में हो जाएगा।