
चौड़ी गली है, उधर कार भी आती है और कार के साथ-साथ ट्रक भी आता है, लेकिन चुनाव के बाद सरकार नहीं आती है। यह पंक्ति पुराना उस्मानपुर गांव पर सटीक बैठती है। आजादी के 78 साल बाद भी राजधानी का यह गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। गांव में न तो पीने के लिए पानी है और न ही रात गुजारने के लिए बिजली की पर्याप्त सप्लाई।
लोगों का आरोप है कि तमाम शिकायतों के बावजूद उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है। मंगलवार को आयोजित संवाद कार्यक्रम में निवासियों ने गांव की समस्याओं को साझा किया। संवाद कार्यक्रम में ब्रह्म प्रकाश, अनिल चौधरी, योगेश चौधरी, सचिन चौधरी, नरेंद्र चौधरी, योगेश डेढ़ा, बंटी चौधरी, चौधरी इच्छा राम समेत अन्य लोगों ने बताया, यमुना किनारे बसे इस गांव में पहले खेती होती थी, लेकिन सरकारी दांव पेंच के बाद उन्हें खेती करने से वंचित कर दिया गया। गांव में 15 साल से सड़क का निर्माण नहीं किया गया है। गांव के रास्ते कच्चे हो गए हैं।
लोगों ने आरोप लगाया कि यहां पीने के लिए पानी की सप्लाई नहीं होती है। लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। महिलाएं दूर का सफर तय करके दूसरी जगहों से पानी भरकर लाती हैं या फिर पानी खरीदकर पीना पड़ रहा है। इसके अलावा तालीम हासिल करने के लिए गांव में एक भी स्कूल नहीं है। बच्चों को पढ़ाई करने के लिए अन्य गांव जाना पड़ता है। वहीं, बीमार होने पर लोगों को दूसरे गांव जाना पड़ता है। यहां गांव में उपचार के लिए एक भी डिस्पेंसरी नहीं है। स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन पर मुसीबतें टूट पड़ती हैं।
गांव में एक भी बारात घर नहीं है। शादी-विवाह के लिए भी दूसरे गांव या कॉलोनी पर आश्रित रहना पड़ता है या फिर सड़कों पर टेंट लगाना पड़ता है।
गांव में चारों तरफ गंदगी फैली हुई है। गांव में साफ-सफाई करने के लिए एक भी कर्मचारी नहीं आते हैं। लोग खुद ही साफ-सफाई करते हैं।
नालियों में गाद जमी हुई है। कई वर्षों से नाली के अंदर से गाद नहीं निकाली गई है। बारिश के दौरान गांव में जलभराव हो जाता है।
जल बोर्ड की ओर से जो टैंकर आता है वह गांव तक नहीं पहुंच पाता है। रास्ते में ही झुग्गी झोपड़ी वाले रोककर पानी भर लेते हैं। गांव में पानी किल्लत है।