दिल का दौरा पड़ने वाले मरीजों को दी जाने दवा ‘बीटा-ब्लॉकर्स’ बन सकती है डिप्रेशन का कारण : शोध

नई दिल्ली। सोमवार को एक शोध में यह बात सामने आई है कि दिल का दौरा पड़ने के बाद इस्तेमाल की जाने वाली दवा बीटा-ब्लॉकर, उन मरीजों में डिप्रेशन का कारण बन सकती है जिनको हार्ट फेल नहीं हुआ है।

बीटा ब्लॉकर्स ऐसी दवाएं हैं जो दिल पर एड्रेनालाईन के प्रभाव को रोकती हैं और दशकों से सभी दिल के दौरे वाले रोगियों के उपचार में इस्तेमाल की जा रही है। इसमें वे मरीज शामिल हैं जिनको हार्ट अटैक के बाद भी पंपिंग फंक्शन सामान्य था, यानी उन लोगों का हार्ट फेल नहीं हुआ था।

हालांकि स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में ऐसे लोगों के समूह में दवा के कोई खास लाभ नहीं पाए गए। इसके अलावा इससे मरीजों में अवसाद का खतरा भी बढ़ गया।

कार्डियक साइकोलॉजी में डॉक्टरेट के छात्र फिलिप लिस्नर ने कहा, हमने पाया कि बीटा ब्लॉकर्स ने दिल का दौरा पड़ने वाले उन मरीजों में अवसाद के लक्षणों के स्तर को थोड़ा बढ़ा दिया जिनका हार्ट फेल नहीं हुआ था।

लिस्नर ने यह भी कहा कि बीटा-ब्लॉकर्स हार्ट के मरीजों के लिए जीवन-रक्षक नहीं हैं मगर फिर भी मरीज इसे ले रहे हैं।

यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में टीम ने बीटा ब्लॉकर्स के चिंता और अवसाद जैसे संभावित दुष्प्रभावों का पता लगाया।

ऐसा इसलिए है क्योंकि पुराने शोधों में यह बात सामने आ चुकी है कि बीटा ब्लॉकर्स से मरीज को अवसाद, नींद न आना और बुरे सपने आने जैसी समस्याएं हो सकती है।

इस वर्ष के प्रारंभ में एनईजेएम में प्रकाशित एक प्रमुख स्वीडिश शोध में पाया गया कि बीटा ब्लॉकर्स दवाएं हृदयाघात या मृत्यु से सुरक्षा नहीं देतीं।

निष्कर्षों के आधार पर लिस्नर की टीम ने 2018 से 2023 तक 806 रोगियों को शामिल करते हुए एक उप-अध्ययन किया, जिन्हें दिल का दौरा पड़ा था, लेकिन हार्ट फेल जैसी कोई समस्या नहीं थी।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लगभग 100 रोगी शोध से पहले से ही बीटा ब्लॉकर्स ले रहे थे। इन रोगियों में अवसाद के अधिक गंभीर लक्षण थे।

निष्कर्षों के मद्देनजर लिस्नर ने डॉक्टरों से आग्रह किया कि वे बगैर हार्ट फेल वाले रोगियों को बीटा ब्लॉकर्स देने पर पुनर्विचार करें।

 

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