सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना दिशा-निर्देशों के पालन के प्रति लापरवाही पर कड़ा एतराज जताया। कोर्ट ने आंदोलनकारी किसानों का जिक्र भले नहीं किया, लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान कोरोना के दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि मास्क नहीं लगाना और शारीरिक दूरी के नियम का पालन नहीं करना दूसरों के मौलिक अधिकारों का हनन है। नियमों का कड़ाई से पालन होना चाहिए, लेकिन पूरे देश में लोग बेधड़क कोरोना के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं। देश के अन्य हिस्सों और विभिन्न राज्यों में दिशा-निर्देशों का पालन नहीं होने की शिकायतों पर कोर्ट ने एसजी और राज्यों के वकीलों से पालन सुनिश्चित कराने के लिए सात दिसंबर तक सुझाव देने को कहा ताकि इस बावत उचित आदेश दिए जा सकें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादियों और रैलियों में सैकड़ों लोग इकट्ठा होते हैं। पुलिस उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती। जस्टिस शाह ने कहा कि बहुत से लोग दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि दिशा-निर्देशों के उल्लंघन का यह मामला सिर्फ गुजरात में ही नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीय समस्या है।
पालन कराने का तंत्र बनाए बगैर सिर्फ जुर्माना बढ़ाने से कुछ नहीं होगा। जस्टिस शाह ने सब्जी मंडियों की भीड़ का जिक्र करते हुए कहा कि बहुत सी सब्जी मंडियां हैं, लोगों को वहां छह फीट की शारीरिक दूरी का पालन करना चाहिए, लेकिन देशभर में कोई इसका पालन नहीं कर रहा। ये वे जगहें हैं जहां तेजी से संक्रमण फैलता है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने सेहत को होने वाले खतरे के मद्देनजर गुजरात हाई कोर्ट के आदेश के उस अंश पर रोक लगा दी जिसमें मास्क नहीं पहनने वालों को कम्युनिटी सर्विस के लिए कोरोना सेंटर भेजने का आदेश दिया गया था।