
गोरखपुर और फूलपुर के बाद कैराना व नूरपुर की हार से चिंतित भाजपा के रणनीतिकार सांस्कृतिक सरोकारों से सियासी रंग को चटख करने की तैयारी में हैं। भगवा टोली ने विपक्षी दलों के गठबंधन से बनने वाले सामाजिक समीकरणों की काट के लिए इस फॉर्मूले पर आगे बढ़ने की तैयारी की है।

इसके लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की तरफ से हिंदुत्व समेत उन पंथों जो सांस्कृतिक तौर पर हिंदुओं के विरोधी नहीं हैं, के सरोकारों से जुड़े स्थलों के लिए अब तक कराए गए कामों को लोगों को ब्यौरे सहित बताए जाएंगे। साथ ही घोषित कामों को भी जल्द पूरा कराने की जानकारी दी जाएगी। प्रमुख नेताओं के दौरे भी होंगे। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इसी माह 28 तारीख को मगहर (संतकबीर नगर) से होने के संकेत हैं।
संगठन से लेकर सरकार में बैठे लोग अब जहां भी जाएंगे तो उनके भाषण में सांस्कृतिक सरोकारों का एजेंडा अनिवार्य हिस्सा होगा। मई में सीएम योगी के संगम तट पर कुंभ में शाही स्नान की तिथियों की घोषणा के महत्व के बारे में भी बताएंगे तो अयोध्या, मथुरा, काशी, चित्रकूट, विंध्याचल और नैमिषारण्य पर मोदी व योगी सरकार के फोकस का उल्लेख ही नहीं करेंगे, बल्कि गैर भाजपाई सरकारों के इन स्थलों के प्रति उपेक्षा की दास्तान भी बताएंगे।
भाजपाई बताएंगे कि तुष्टीकरण की नीति और एक वर्ग विशेष की नाराजगी का ध्यान रखते हुए हिंदुओं के स्थलों की अनदेखी की गई। पार्टी के प्रदेश महामंत्री और विस्तारक योजना के प्रभारी विजय बहादुर पाठक मंगलवार को संतकबीर नगर में ही थे। उन्होंने गोरखपुर क्षेत्र के प्रमुख लोगों के साथ बैठक कर योजनाओं का खाका खींचा।
ये है वजह और ये है असली मकसद
पीएम मोदी संत कबीर दास की परिनिर्वाण स्थली मगहर में कबीर अकादमी का शिलान्यास भी करेंगे। माना जाता है कि इसका उद्देश्य कबीर के समाज सुधार और साहित्य के कामों को आज के संदर्भ में लोगों के सामने लाना है। यूं तो ज्यादातर कबीर पंथी हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते हैं, लेकिन सभी जानते हैं कि कबीर पंथियों में बड़ी संख्या में पिछड़ी जाति के लोग हैं।