नई दिल्ली:
क्या 22 जनवरी को हो सकेगी निर्भया के दोषियों को फांसी? उनके डेथ वारंट पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं. यह केस दोबारा कानूनी दांव पेंच में उलझता हुआ दिख रहा है. सात साल पहले हुए निर्भया रेप और हत्या मामले में अंतिम दौर के कानूनी दांव पेंच शुरू हो गए हैं. इस जघन्य कांड के लिए मौत की सजा का फैसला सुनाए गए चार दोषियों में से एक विनय शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका लगाई है. इस मामले में ये पहली क्यूरेटिव यानी उपचारात्मक याचिका है. विनय शर्मा ने अपनी याचिका में डेथ वारंट पर रोक लगाने की मांग भी की है. तीन दोषियों के वकील एपी सिंह के मुताबिक बाकी दो अक्षय और पवन की क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने के लिए कुछ दस्तावेजों की दरकार है.
पटियाला हाउस कोर्ट से उनकी प्रतिलिपि मुहैया कराने के लिए वहीं अर्ज़ी दाखिल की है. वहां से दस्तावेज़ की कॉपी मिलने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट में उपचार याचिका दाखिल करेंगे. इसके साथ ही ये चर्चित मामला एक बार फिर कानूनी दांव पेंच में उलझता नज़र आ रहा है. इसके साथ ही 22 जनवरी को इन दोषियों को फांसी दिए जाने के लिए जारी डेथ वारंट पर भी संदेह के बादल मंडराने लगे हैं. कानून के जानकारों के मुताबिक क्यूरेटिव याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना बाकी है.
क्यूरेटिव याचिका पर फैसला प्रतिकूल आने के बाद भी दोषियों के पास संवैधानिक अधिकार के तहत राष्ट्रपति के पास जीवनदान के लिए दया याचिका दाखिल करने का मौका रहता है. राष्ट्रपति तक दया याचिका पहुंचाने और राष्ट्रपति के फैसले की सूचना जेल तक पहुंचने की भी प्रक्रिया है. 2014 के शत्रुघ्न चौहान फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दया याचिका सिर्फ एक औपचारिकता नहीं बल्कि दोषी का संवैधानिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर दिशा निर्देश भी जारी किए थे.बता दें, गुरुवार को निर्भया गैंगरेप मामले के एक दोषी विनय शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन लगाई है. इसके साथ ही उसने अपने खिलाफ जारी हुए डेथ वारंट पर रोक लगाने की अर्जी भी लगाई है. बता दें, दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार को ही चारों दोषियों का डेथ वारंट जारी कर दिया था. चारों दोषियों को 22 जनवरी की सुबह सात बजे फांसी दी जाएगी. निर्भया के दोषी विनय ने अपनी क्यूरेटिव याचिका में कहा है कि सोचे समझे तरीके से उसके खिलाफ पक्षपात किया गया है.. इस सुनियोजित पक्षपात और राजनीतिक पक्षपात को खत्म करने के लिए अनिवार्य है कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज उसकी याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई करें. इस कार्रवाई में जो डेथ वारंट की तलवार लटकाई गई है. उसे दूर किया जाए और डेथ वारंट पर रोक लगाई जाए