वृश्चिक संक्रांति पर बन रहे ये शुभ योग

आज यानी 16 नवंबर को मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि है। इस तिथि पर उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण किया जाता है और सूर्यदेव तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए आज वृश्चिक संक्रांति मनाई जा रही है।
वृश्चिक संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा-अर्चना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सूर्य देव की उपासना करने से करियर और कारोबार में सफलता मिलती है। वृश्चिक संक्रांति के अवसर पर कई योग भी बन रहे हैं। ऐसे में आइए जानते हैं आज का पंचांग के बारे में।


तिथि: कृष्ण द्वादशी
मास पूर्णिमांत: मार्गशीर्ष
दिन: रविवार
संवत्: 2082
तिथि: 17 नवंबर को द्वादशी प्रातः 04 बजकर 47 मिनट तक
योग: विष्कंभ प्रातः 06 बजकर 47 मिनट तक
करण: कौलव दोपहर 03 बजकर 40 मिनट तक
करण: 17 नवंबर को तैतिल रात्रि 04 बजकर 47 मिनट तक

सूर्योदय और सूर्यास्त का समय
सूर्योदय: प्रातः 06 बजकर 45 मिनट पर
सूर्यास्त: सायं 05 बजकर 27 मिनट पर
चंद्रोदय: 17 नवंबर को प्रातः 04 बजकर 02 मिनट पर
चंद्रास्त: दोपहर 03 बजकर 04 मिनट पर
सूर्य राशि: तुला
पक्ष: कृष्ण

आज के शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त: प्रातः 11 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक
अमृत काल: सायं 07 बजकर 32 मिनट से रात्रि 09 बजकर 18 मिनट तक

आज के अशुभ समय
राहुकाल: सायं 04 बजकर 07 मिनट से सायं 05 बजकर 27 मिनट तक
गुलिकाल: दोपहर 02 बजकर 46 मिनट से सायं 04 बजकर 07 मिनट तक
यमगण्ड: दोपहर 12 बजकर 06 मिनट से दोपहर 01 बजकर 26 मिनट तक

उत्पन्ना एकादशी 2025 व्रत पारण टाइम
उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण 16 नवंबर को किया जाएगा। इस दिन व्रत का पारण करने का समय दोपहर 12 बजकर 55 मिनट से लेकर दोपहर 03 बजकर 08 मिनट तक है।

आज का नक्षत्र
आज चंद्रदेव आज हस्त नक्षत्र में रहेंगे।
हस्त नक्षत्र: 17 नवंबर को रात्रि 02 बजकर 11 मिनट तक
सामान्य विशेषताएं: साहसी, दानशील, निर्दयी, चालाक, परिश्रमी, ऊर्जावान, झगड़ालू, प्रेरणादायक, बुद्धिमान चंद्रमा और खेल में कौशल
नक्षत्र स्वामी: चंद्रमा
राशि स्वामी: बुध देव
सविता – सूर्योदय के देवता
प्रतीक: हाथ या बंद मुट्ठी

वृश्चिक संक्रांति का धार्मिक महत्व
वृश्चिक संक्रांति वह दिन है जब सूर्यदेव तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं। यह परिवर्तन आत्मचिंतन, साधना और तप का समय माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव की उपासना से नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं और आत्मबल बढ़ता है। प्रातःकाल स्नान, सूर्य अर्घ्य और दान का विशेष महत्व होता है। श्रद्धालु तिल, गुड़, और वस्त्र दान करते हैं। यह संक्रांति व्यक्ति के जीवन में गहराई, स्थिरता और आत्मविश्वास का संचार करती है। जो लोग आध्यात्मिक साधना या ध्यान करते हैं, उनके लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना गया है।

वृश्चिक संक्रांति पर क्या-क्या करें?
प्रातः काल सूर्योदय से पहले स्नान करें।
तांबे के लोटे में जल, तिल और लाल फूल डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
“ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र का जप करें।
तिल, गुड़, वस्त्र और अन्न का दान करें।
भगवान सूर्यदेव या भगवान शिव की पूजा करें।
‘आदित्य हृदय स्तोत्र’ या ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का पाठ करें।
सात्विक भोजन ग्रहण करें और क्रोध से दूर रहें।
पितरों के लिए तिल और जल अर्पित करें।
ध्यान और आत्मचिंतन के लिए समय निकालें।

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