
सैंज घाटी का दुर्गम गांव धारा-पोरिए। यहां रात का मतलब अब तक सिर्फ अंधेरा था। तीन पीढ़ियां मोमबत्ती, लालटेन और सूरज की रोशनी के सहारे जिंदगी चलाती रहीं। बिजली न होने से पूरा गांव बच्चों की पढ़ाई से लेकर बुजुर्गों की सुरक्षा तक जूझता रहा। लेकिन अब गांव की तस्वीर बदलेगी। आजादी के अब धारा-पोरिए गांव में बिजली का पहला बल्ब जला।
चार परिवारों वाला गांव रोशनी में नहाया तो बच्चों की तालियां दूर तक गूंज उठीं। बुजुर्ग चुपचाप खड़े रहे। आंसू छलकते रहे और चेहरे पर ऐसी राहत थी जो शब्दों में नहीं उतर सकती। गांव तक सड़क आज भी नहीं है।
खड़ी चढ़ाई और पगडंडियों से होते हुए शैंशर से करीब चार किलोमीटर दूर बिजली के दस खंभे ढोकर लगाए गए। गांव में सिर्फ बिजली ही नहीं आई। मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट भी पहली बार पहुंचे। युवाओं ने वीडियो कॉल की कोशिश की तो बुजुर्गों ने बस यही कहा अगर यह पहले आता, तो हमारी कई मुश्किलें कम हो जातीं। अब गांव बदलेगा। जिंदगी बदलेगी। बच्चे रात में पढ़ सकेंगे। महिलाएं सुरक्षित तरीके से काम निपटा पाएंगी।
20 से अधिक गांव अब भी अंधेरे में
जिले के चारों उपमंडलों कुल्लू, मनाली, बंजार और आनी में अब भी 20 से अधिक ऐसे गांव और उपगांव हैं, जिनमें अभी तक बिजली नहीं पहुंच पाई है। इन क्षेत्रों के ग्रामीणों को डिजिटल युग में भी अंधेरे में जीवन यापन करना पड़ रहा है। सैंज घाटी के ही दुर्गम गांव शाक्टी, मरौड़ और शुगाड़ तीन ऐसे गांव हैं, जिनमें बिजली नहीं है।
बिना बिजली के हर छोटा-बड़ा काम सूरज की गति पर निर्भर था। अगर कोई काम शाम तक रह जाए, तो अगले दिन का इंतजार करना पड़ता था। रातें सिर्फ अंधेरा, सावधानी और असुविधा लेकर आती थीं।



