बिहार: जनता के हक के संरक्षक, दरोगा प्रसाद राय की 103वीं जयंती आज

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. दरोगा प्रसाद राय की 103वीं जयंती आज बड़े सम्मान के साथ मनाई जा रही है। पथ और भूमि पर्चा कानून लागू कर बिहार की जनता को उनके हक दिलाने वाला यह महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी राजनीति और समाज सेवा में अपनी अमिट छाप छोड़ गए।

प्रारंभिक जीवन और परिवार

दरोगा प्रसाद राय का जन्म 2 सितंबर 1922 को सारण जिले के दरियापुर प्रखंड के बजहिया गांव में हुआ। वह एक साधारण किसान परिवार से थे, लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता और संघर्षशीलता ने उन्हें राजनीति के शिखर तक पहुँचाया। उनके परिवार में पत्नी पार्वती देवी और पांच पुत्र विधानचंद्र राय, डॉ. चंद्रिका राय, अशोक राय, अनिल राय और सुनील राय शामिल हैं।

राजनीतिक जीवन और विधायक से मुख्यमंत्री तक का सफर

दरोगा प्रसाद राय ने कांग्रेस पार्टी से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। स्वतंत्रता के बाद 1952 में पहली बार सारण जिले के परसा विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए और लगातार जनता की सेवा में लगे रहे। वर्ष 1967 में वह पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, हालांकि उनका कार्यकाल केवल 10 महीने का था। बावजूद इसके उन्होंने राज्य प्रशासन और विकास में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए।

राज्य विकास में अहम भूमिका

मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पथ और भूमि पर्चा कानून लागू कर जनता के अधिकार सुनिश्चित किए। उन्होंने बिहार की राजधानी पटना को उत्तर बिहार से जोड़ने वाले महात्मा गांधी सेतु की आधारशिला रखवाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा उन्होंने वित्तीय प्रबंधन सुधारने के लिए कई योजनाएं लागू कीं।

मंत्री, उपमुख्यमंत्री और जनसेवा में योगदान

दारोगा प्रसाद राय अब्दुल गफूर सरकार में वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री भी रहे। उनके जीवन का मूलमंत्र था, सच्ची मेहनत, संघर्ष और जनता के प्रति समर्पण। उनकी राजनीतिक विरासत उनके पुत्र डॉ. चंद्रिका राय के माध्यम से आज भी जीवित है। दरोगा प्रसाद राय ने अपने प्रारंभिक जीवन में शिक्षा के महत्व को समझा और कठिनाइयों के बावजूद उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने डोगहा में प्राथमिक शिक्षा, परसा में हाई स्कूल और राजेन्द्र कॉलेज छपरा में इंटर की पढ़ाई की। स्नातक की पढ़ाई भागलपुर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पूरी की और वकालत के लिए पटना चले गए। शिक्षक के रूप में समाज सेवा करने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों की समस्याओं को समझने का अवसर मिला और राजनीति में आने की प्रेरणा मिली।

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