
वायु प्रदूषण और मौसम में हो रहे बदलाव के चलते इन दिनों सेहत को लेकर चुनौतियां बढ़ गई हैं। खासकर, जिन्हें पहले से हार्ट, किडनी, अस्थमा जैसे कोई परेशानी है उनके बीमार होने की आशंका अधिक है। इसी तरह बुजुर्गों, बच्चों और गर्भवती महिलाओं या जिनकी इम्युनिटी कमजोर है, उन्हें भी प्रदूषण के साथ अगले कुछ महीनों, खासकर फरवरी तक इन्फ्लुएंजा को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है।
मौसम बदलने पर वायरस, बैक्टीरिया भी सक्रिय हो जाते हैं, जो लोग पहले से दवाइयां ले रहे हैं, उन्हें निमोनिया या संक्रमण को लेकर विशेष सतर्कता बरतनी होगी। सर्दी के दिनों में इनडोर और आउटडोर दोनों ही प्रदूषण हानिकारक रूप ले लेते हैं। वहीं दिनचर्या और खानपान में परिवर्तन के कारण भी सेहत से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
पूरे शरीर को प्रभावित करता है प्रदूषण
वायुमंडल में हानिकारक अतिसूक्ष्म कणों की मौजूदगी बढ़ने के साथ, सर्दी के दिनों में घरों में आग जलाने जैसे कारणों से भी प्रदूषण बढ़ता है। इसमें कार्बन, निकल, कैडमियम जैसे हानिकारक रासायनिक यौगिक होते हैं, जो सेहत के लिए काफी खतरनाक हैं। ये आंखों से नहीं दिखते और नष्ट भी नहीं होते। ये सांसों से शरीर के अंदर प्रवेश कर आंतरिक अंगों को प्रभावित करते हैं। यहां तक कि ये रक्त में भी घुल जाते हैं, जो लोग लगातार प्रदूषित इलाकों में रहते हैं, उनके फेफड़े धूमपान करने वालों की तरह काले पड़ जाते हैं।
कार्बन कणों से श्वसन प्रक्रिया पर खराब असर होता है, जिससे आक्सीजन सही ढंग से ट्रांसफर नहीं हो पाती। इससे श्वसन मार्ग में सूजन आ जाती है। शरीर की कोशिकाएं कार्बन कणों को खत्म करने की कोशिश करती हैं। चूंकि, ये पार्टिकुलेट मैटर होते हैं, इसलिए नष्ट नहीं होते। प्रदूषण से गर्भस्थ शिशु का भी विकास अवरुद्ध हो जाता है।
दोतरफा चुनौती से बचने का रास्ता
हमारे फेफड़े प्रदूषण से लगातार लड़ रहे हैं। उनमें इतनी क्षमता नहीं बचती कि वे अचानक किसी वायरस और बैक्टीरिया का सामना कर सकें। यही कारण है लोग इन दिनों जल्दी संक्रमित होते हैं। इन्फ्लूएंजा का प्रदूषण के साथ घातक गठजोड़ बन जाता है। बाहर निकलते समय एन95 मास्क का प्रयोग करना चाहिए। वहीं घरों में सफाई करते हुए धूल, धुएं से बचना चाहिए। जागरूक होकर हम कई सारी समस्याओं का निराकरण कर सकते हैं।
फ्लू वैक्सीन है कारगर
फ्लू से बचाव में वैक्सीन एक कारगर उपाय है। डब्ल्यूएचओ हर वर्ष नए वायरस से बचाव के लिए एंटीबाडीज की लिस्ट जारी करता है। इसी आधार पर निर्माता नए वैक्सीन तैयार करते हैं। इस वैक्सीन से पुराने सभी प्रकार के वायरस से मजबूत प्रतिरक्षा बनती है। यह वैक्सीन वर्ष में एक बार कभी भी लगवाई जा सकती है। किडनी, हार्ट के मरीज, अंग प्रत्यारोपण वाले मरीजों को भी वैक्सीन सुरक्षा देती है। हालांकि इन दिनों खानपान और दिनचर्या का भी विशेष ध्यान रखना होगा। इम्यून अच्छा होगा तो बैक्टीरिया या वायरस की चुनौतियां भी कम होंगी।
फ्लू और प्रदूषण से सतर्कता
वायरल संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें।
साफ-सफाई का खयाल रखें।
सर्दी-जुकाम और बुखार अधिक दिनों तक रहता है तो डाक्टर से संपर्क करें।
राहत के लिए भाप ले सकते हैं। पानी सिप सिप कर पीने से गले को राहत मिलती है।
नमक पानी को गुनगुना करके नाक में एक-एक बूंद डालें तो उससे आराम मिलेगा।
नाक साफ रखें, घर के अंदर प्रदूषण न होने दें।
तुलसी, अदरक, इलायची मिलाकर गर्म पानी का सेवन कर सकते हैं।
हल्का और सुपाच्य भोजन करना चाहिए।
आराम करना जरूरी है, अगर आप पर्याप्त नींद लेते हैं तो वायरस बुखार से जल्दी रिकवर कर जाएंगे।
संतुलित आहार लेते रहें ।
वायरल संक्रमण होने पर क्या करें?
ज्यादातर वायरल संक्रमण दो से तीनों में स्वत: ठीक हो जाते हैं।
बुखार हो रहा है, तो पट्टियां रखें, पैरासिटामाल ले सकते हैं।
अगर बुखार 100 से नीचे है, तो पैरासिटामाल लेने की जरूरत नहीं है ।
पैरासीटामोल के अलावा अन्य कोई भी दवा खुद से नहीं लेनी चाहिए।
कई सारी दवाएं कांबिनेशन में आती हैं, हो सकता है वे दर्द जल्दी कम कर दें, लेकिन उसका किडनी पर असर होता है।
अनावश्यक एंटीबायोटिक से बचें
वायरल इन्फेक्शन में एंटीबायोटिक काम नहीं करता, इसलिएइसके अनावश्यक प्रयोग से बचना चाहिए। एंटीबायोटिक के गलत प्रयोग से रेजिस्टेंस हो सकता है, जिससे कई सारी दवाओं का असर कम होने लगता है। जो बैक्टीरिया दवा से नहीं मरता, अगर उससे संक्रमण फैलेगा, जो अधिक जोखिमकारक और जानलेवा साबित होगा।



