
राज्यसभा चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नया दल बदल कानून लागू होने जा रहा है। विधानसभा में इसके लिए अयोग्यता (निरर्हता) अधिनियम 2025 को शुक्रवार को प्रस्तुत किया गया। इस कानून से पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने वाले विधायक अयोग्य ठहराए जा सकेंगे।
नियम 64 के तहत दल बदल कानून की नियमावली को विधानसभा में पेश किया गया। सदन को जानकारी दी गई कि अपने दल के व्हिप से बाहर जाकर दूसरे संगठन को मतदान करना और दल की अनुमति के बगैर मतदान से दूर रहना कानून का उल्लंघन माना जाएगा। ऐसी स्थिति में विधायक की सदस्यता समाप्त की जा सकती है।
राजनीतिक दल व्हिप का उल्लंघन होने की सूरत में 15 दिन के भीतर याचिका दाखिल कर सकते हैं। विधानसभा अध्यक्ष के पास याचिका प्राप्त होने के बाद सदन को इसकी जानकारी दी जाएगी। दल बदल कानून के तहत किसी भी सदस्य के खिलाफ याचिका विधानसभा अध्यक्ष को अन्य कोई भी सदस्य दे सकता है।
अध्यक्ष के संबंध में दी गई याचिका विधानसभा सचिव को संबोधित की जाएगी। नियम पांच और छह को अनिवार्य किया गया है। नियम पांच के तहत दस्तावेजी साक्ष्य की प्रतियां प्रस्तुत करनी होंगी। याचिकाकर्ता किसी दूसरे व्यक्ति के माध्यम से दी गई सूचना के आधार पर याचिका दाखिल करता है तो ऐसे में व्यक्ति का नाम, पता और दी गई सूचना का विवरण विधानसभा में प्रस्तुत करना होगा।
इसलिए पड़ी जरूरत
प्रदेश में बीते दिनों हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा की संख्याबल 28 होने के बावजूद वह 32 वोट पाकर एक सीट जीतने में कामयाब रही। चुनाव प्रक्रिया में तीन वोट खारिज भी हो गए थे। इस मामले को लेकर क्रॉस वोटिंग के आरोप भी लगे।
हिमाचल में हो चुकी है कार्रवाई
पड़ोसी राज्य हिमाचल में दल बदल कानून के तहत कांग्रेस के छह विधायकों को अयोग्य करार दिया जा चुका है। उस समय कांग्रेस के इन विधायकों पर पार्टी व्हिप का अनुपालन न करने के आरोप लगे थे। हिमाचल में राज्यसभा चुनाव के दौरान यह कार्रवाई हुई थी। हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस के 40 विधायक थे और भाजपा के 25 सहित तीन निर्दलीय विधायक थे जबकि मतदान में दोनों राज्यसभा उम्मीदवारों को 34-34 वोट मिल गए थे। बाद में पर्ची के माध्यम से परिणाम निकाला गया जो हर्ष महाजन के पक्ष में गया था।
क्रॉस वोटिंग के बाद अस्तित्व में आया था प्रदेश का अपना दल बदल कानून
जम्मू-कश्मीर के संविधान में संशोधन कर 2005 में पीडीपी-कांग्रेस सरकार के समय एक नया दल बदल कानून बना था। यह जम्मू-कश्मीर के संविधान में 13वां संशोधन था, जो 30 दिसंबर 2005 को विधानसभा में पारित किया गया था। गुलाम नबी आजाद उस समय राज्य के मुख्यमंत्री थे। इस कानून के प्रावधान इतने सख्त थे कि इसके तहत कोई भी विधायक अपने संबंधित दल को छोड़ नहीं सकता था।
अगर किसी दल के सभी विधायक भी किसी दल से अलग हो जाते और अलग ग्रुप भी बना लेते तो भी दल बदल कानून के तहत सभी को फौरन अयोग्य ठहराया जा सकता था। एक पूर्व मंत्री के मुताबिक मुफ्ती मोहम्मद सईद सरकार के समय क्राॅस वोटिंग हुई थी। उसके बाद इसकी जरूरत महसूस की गई थी।



