क्या पाकिस्तान के तर्क इतने हैं मजबूत, सिंधु जल संधि को लेकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जाने की तैयारी

भारत द्वारा सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित किए जाने के कदम से पाकिस्तान बौखला गया है. अब वह इस मुद्दे को इंटरनेशनल कोर्ट में ले जाने की तैयारी कर रहा है. 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच बनी यह संधि तीन युद्धों (1965, 1971, 1999) के बावजूद भी बरकरार रही थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले में दो दर्जन से टूरिस्ट मारे गए थे. इसक बाद भारत ने सख्त कदम उठाते पांच बड़े फैसले लिए थे, जिसमें इंडस वॉटर ट्रिटी शामिल था.

आईसीजी में उठाने का प्लानिंग

पाकिस्तान के कानून और न्याय राज्य मंत्री अकील मलिक ने कहा कि वे विश्व बैंक, स्थायी मध्यस्थता न्यायालय और हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में यह मामला उठाने की योजना बना रहे हैं. इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी यह मुद्दा उठाने पर विचार किया जा रहा है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

हालांकि, एक्सपर्ट का मानना है कि पाकिस्तान की ये कोशिशें नाकाम हो सकती हैं. भारत ने 2019 में ICJ की अनिवार्य न्यायिक अधिकारिता को स्वीकार करते समय 13 अपवाद जोड़े थे, जिनमें से एक यह है कि कॉमनवेल्थ देशों से जुड़े विवादों में ICJ की कोई भूमिका नहीं होगी. पाकिस्तान एक कॉमनवेल्थ सदस्य होने के नाते ICJ में भारत के खिलाफ मामला नहीं दर्ज करा सकता.

 

पाकिस्तान नहीं कर पाएग कुछ भी

वहीं, विश्व बैंक की भूमिका भी सीमित है. वह सिर्फ मध्यस्थता या सलाहकार की भूमिका निभा सकता है, कोई कानूनी हस्तक्षेप नहीं कर सकता. सिंधु जल संधि के अनुसार, भारत को सतलुज, ब्यास और रावी की नदियों का अधिकार मिला है, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब का. लेकिन भारत ऊपरी प्रवाह वाला देश होने के कारण सभी नदियों पर तकनीकी अधिकार रखता है.

यह विवाद ऐसे समय पर भड़का है जब कश्मीर में आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिसकी जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ ने ली है. भारत ने इस घटना को कायरतापूर्ण और पाकिस्तान प्रायोजित करार दिया है.

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