आर्मी डेः घने जंगलों में नक्सलियों से लोहा लेते हैं जांबाज ‘कोबरा कमांडो’

घने जंगलों में रहकर नक्सलियों से लोहा लेते हैं और अपनी जांबाजी के लिए जाने जाते हैं कोबरा कमांडो। जानिए इस स्पेशल टास्क फोर्स के बारे में।

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 राष्ट्रीय युवा महोत्सव के तहत हरियाणा के रोहतक में स्थित बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय में लगी सेना और अर्द्धसैनिक बलों की प्रदर्शनी में सेना की वीरता की कहानियां बताई जा रही हैं। इन्हीं में से एक है ‘कोबरा कमांडो’। सीआरपीएफ की यह स्पेशल टास्क फोर्स घने जंगलों में रहकर नक्सलियों से लोहा लेती है। कोबरा कमांडो अपनी जांबाजी के लिए जाने जाते हैं। यह अपनी चपलता और चालाकी से दुश्मन को ढेर कर देते हैं।

कोबरा कमांडो की दुश्मनों से लड़ने की शैली अब विदेश तक पहुंच गई है। यही वजह है कि यह विश्व की बड़ी सेनाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले अमेरिका, रूस और इजराइल की फोर्स को गोरिल्ला वार के गुर सिखा रहे हैं। हर साल या छह महीने में कोबरा यूनिट के कमांडो विदेशी फोर्स को प्रशिक्षण देने जाते हैं। हाल ही में इजराइल से आये कमांडो ने अपनी विंग के बारे में अमर उजाला को बताया।
प्रदर्शनी में बड़े ऑपरेशन में शामिल रहे कोबरा कमांडो भी आये। इनमें एक कमांडो एक करोड़ के इनामी कुख्यात नक्सली मालोजुला कोटेश्वर राय उर्फ किशन जी को मारने वाले ऑपरेशन में भी शामिल रह चुका है। सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडो राकेश ने बताया कि  कोबरा कमांडो ने करोड़ों के दर्जनों इनामी नक्सलियों को मारा है। हालांकि, कई ऑपरेशन में कोबरा कमांडो भी शहीद हुए हैं
राकेश ने बताया कि नक्सलियों को जमीन में घात लगाकर शिकार बनाते हैं। उत्तर पूर्व के राज्यों में कभी-कभी विदेशी उग्रवादियों से भी भिड़ंत हो जाती है। सीआरपीएफ में भर्ती होने वाले जवानों में से ही कोबरा कमांडो को चुना जाता है। चयन के बाद कोबरा में शामिल करने के लिए जवानों को कभी चार तो कभी नौ महीने का कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है। कमांडो को कई बार विदेशी फोर्स के साथ संयुक्त प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है।
राकेश ने बताया कि फिलहाल देश में कोबरा की 10 यूनिट है। एक यूनिट में करीब 1300 जवान शामिल होते हैं। जैसे-जैसे सीआरपीएफ मजबूत होती जा रही है उसी गति ने नक्सलियों ने भी बचाव के तरीके ढूंढ लिये हैं। सीआरपीएफ अधिकारी ने बताया कि नक्सली अब ज्यादातर लूट की वारदात करते हैं, ताकि रुपया इकट्ठा हो सके। जब इनके पास काफी धन एकत्रित हो जाता है तो अपनी जान बचाने के लिए आत्मसमर्पण कर देते हैं।
 नक्सली को जंगल के अंदर खदेड़कर मारनाः इजराइल की फोर्स के साथ प्रशिक्षण लेकर आये कोबरा के असिस्टेंट कमांडो राकेश कुमार ने बताया कि कोबरा फोर्स का मुख्य टारगेट नक्सली को जंगल के अंदर खदेड़कर मारना होता है, ताकि आसपास बसे नागरिकों को परेशानी न हो। साथ ही नक्सलियों के प्रभाव में रहने वाले लोग उनके साथ न जुड़ सकें।
जिंदा पकड़ना ताकि कैंप का खात्मा हो सकेः कोबरा कमांडो की दूसरी विशेषता यह है कि वे अधिकतर नक्सलियों को जिंदा पकड़ने की कोशिश करते हैं, ताकि जंगल के अंदर छिपे ग्रुप के बारे में जानकारी लेकर पूरे कैंप का खात्मा किया जा सके।
 गोरिल्ला वार में महारतः कोबरा कमांडो की धारदार शैली होती है गोरिल्ला वार। इसके तहत कमांडो नक्सलियों को पेड़ों पर चढ़कर या रात भर झाड़ियों में घात लगाकर निशाना बनाते हैं। कमांडो जंगल में एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर सेकेंड के हिसाब से पहुंच जाते हैं। सुरक्षा कारणों के लिहाज से कोबरा कमांडो के कुछ गुर सार्वजनिक नहीं किये जा सकते।

 

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