हिमाचल में मिली दुर्लभ वनस्पति, पाचन शक्ति को करेगी मजबूत

हिमाचल प्रदेश में पहली बार दुलर्भ वनस्पति लाइकोपोडियम जापोनिकल (क्लबमॉस या वुल्फ फट) प्रजाति मिली है। मंडी जिले की बरोट घाटी में इस वनस्पति के कुछ पौधे मिले हैं। यह वनस्पति चीन, जापान और दक्षिणी एशियाई देशों पाई जाती है और इसका उपयोग होम्योपैथी में दवाएं बनाने के लिए किया जाता है। चर्म रोगों और पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए यह रामबाण का काम करती है। भारत में उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में इसके मिलने का दावा किया जाता है। डीएवी कॉलेज होशियारपुर के सहायक प्रोफेसर और टेरिडोलॉजिस्ट डॉ. सुनील कुमार वर्मा ने करीब 20 वर्षों के शोध के बाद इस प्रजाति के मिलने का दावा किया है।

उन्होंने बताया कि इसकी पुष्टि इंडियन फर्न जर्नल और प्रसिद्ध टेरिडोलॉजिस्ट प्रोफेसर एसपी खुल्लर ने की। डॉ. सुनील कुमार के अनुसार यह एक दुर्लभ प्रजाति की वनस्पति है। बरोट घाटी में सर्वेक्षण के दौरान यह प्रजाति मिली है। 1,800 से 2,000 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई पर यह वनस्पति पाई जाती है। इसके लिए ठंडा और नमी वाला वातावरण जरूरी है और यह नदी और झील के आसपास बारिश के दौरान उगती है। यह जंगल के मलबे या चट्टानी टुकड़ों पर अम्लीय मिट्टी में उगती है। बताया जा रहा है कि प्रथम विश्व युद्ध में सैनिकों ने रात के समय इसे जलाकर जहां रोशनी की थी, वहीं चर्म रोगों के लिए भी इसका उपयोग किया गया। जब इसकी मेडिसिन वैल्यू का पता चला तो इसकी मांग काफी बढ़ गई और जलवायु परिवर्तन के साथ इसकी प्रजाति समाप्त होती गई।

कई रोगों में रामबाण

विशेषज्ञों के अनुसार इसका उपयोग होम्योपैथी की दवाएं बनाने में होता है। यह लीवर संबंधित रोगों के लिए भी रामबाण का काम करती है। इसमें पोटेशियम पाया जाता है, जो संक्रमण, सूजन और पाचन शक्ति के इलाज के अलावा कई रोगों में काम आती है।

बरोट घाटी में दुर्लभ प्रजाति की वनस्पति लाइकोपोडियम जापोनिकल मिली है। चीन, जापान जैसे देशों में यह प्रजाति पाई जाती है। होम्योपैथी की दवाएं बनाने में इसका उपयोग होता है। -डॉ. सुनील वर्मा, सहायक प्रोफेसर, डीएवी कॉलेज, होशियारपुर

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