सूरत को देखिए, शहरों की बाढ़ समझ में आ जाएगी

भारत समेत दुनिया के कई देशों के शहरों ने बाढ़ देखी है. बीते 150 साल में तमाम नगर प्रशासनों ने पानी की ताकत को नजरअंदाज किया. आज इसका नतीजा सबके सामने है.डायमंड सिटी या सिल्क सिटी के नाम से मशहूर भारत का शहर- सूरत. तापी नदी के किनारे बसा सूरत देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम इंजन की तरह है. आर्थिक समृद्धि ने गुजरात के इस शहर को रोजगार का एक अहम ठिकाना बना दिया. 1991 में सूरत की आबादी 14.98 लाख थी. सन 2011 में हुई आखिरी जनगणना में सूरत की आबादी लगभग तीन गुनी बढ़ कर 44.66 लाख पहुंच गई. लगातार बढ़ती आबादी को बसाने और नए व्यापारिक ठिकानों के लिए तापी नदी के किनारों का रुख किया गया. शहर का विस्तार करते समय तापी नदी की बाढ़ और उसके प्राकृतिक व्यवहार को नजरअंदाज किया गया. बीते 50 साल में नदी ने कई बार अपने किनारे बदले. रेवेन्यू रिकॉर्ड्स और सैटेलाइट तस्वीरों में यह साफ ढंग से दर्ज है. लेकिन इसके बावजूद बाढ़ की आशंका वाले इलाकों में शहर में घुसता चला गया. तापी नदी में 1883 से 2006 तक आई बाढ़ों का ब्यौरा सरकारी रिकॉर्ड्स में दर्ज है. नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) के केस डॉक्यूमेंट के मुताबिक 1979, 1990, 1994, 1998 और 2006 की बाढ़ ने शहर को काफी नुकसान पहुंचाया. 1998 की बाढ़ में 60 फीसदी सूरत डूबा और 2006 की बाढ़ में 75 फीसदी. रास्ता बदलती हैं नदियां भयानक होती बाढ़ की जब विस्तृत जांच की गई तो पता चला कि सूरत शहर में नदी के सटीक नक्शे के बिना ही कुछ तटबंध बनाए गए. शहर प्रशासन और विकास प्राधिकरण के मानचित्र 60 से 65 फीसदी सटीक थे. एनजीटी के मुताबिक सन 2000, 2004 और 2009 की तस्वीरों को देखें तो साफ चला चलता है कि तापी नदी रास्ता बदल चुकी है. जमीन कटने या गाद जमा होने से उसकी चौड़ाई लगातार बदल रही है. लगातार भीषण होती बाढ़ के बीच सूरत नगर निगम को निचले इलाकों में बनी सभी इमारतों का सर्वे करने का निर्देश दिया गया. इस निर्देश के करीब 10 साल बाद 2019 में बिल्डिंग रेगुलेशन प्रकाशित हुआ, लेकिन तब तक बुरी तरह बाढ़ में डूबने वाले इलाकों में फिर से इमारतें बन चुकी थीं. केवल सूरत ही नहीं बांग्लादेश, भारत, चीन, अमेरिका और यूरोप तक में कई ऐसे शहर हैं जो बाढ़ से जूझ रहे हैं. अर्बन फ्लडिंग नाम का नया शब्द इन्हीं घटनाओं से निकला है. जलवायु परिवर्तन और मौसम की अति के दौर में बेतरतीब शहरी विकास ने जिंदगियों को डुबोने की जैसे पूरी योजना तैयार कर ली है. पानी के प्रवाह के रास्ते अवरोधित हो रहे हैं. जलवायु परिवर्तन तमाम इलाकों में माइक्रो क्लाइमेट को बुरी तरह प्रभावित करने लगा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक 2000 से 2030 के बीच दुनिया में शहरी इलाकों का आकार चार गुना बढ़ जाएगा लेकिन इसके साथ ही बाढ़ और सूखे की संभावना भी 230 फीसदी बढ़ जाएगी. जर्मनी में बाढ़ से हुए नुकसान ने यह दिखा दिया है कि नदियां कभी भी उफनकर अपने पुराने रास्ते की तरफ बढ़ सकती हैं. अगर वे इलाके इंसानी आबादी से भर जाएं तो फिर क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं.

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