सपा मुखिया व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बसपा की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने में जल्दी तो नहीं कर दी। एग्जिट पोल आने से पहले ही उन्होंने भाजपा को रोकने के लिए बसपा से दोस्ती का संकेत दे दिया। सपा के ही कुछ नेता मान रहे हैं कि मतगणना के बाद इस तरह का बयान आता तो बेहतर रहता।
सपा के एक नेता के मुताबिक गठबंधन बहुमत से सरकार बनाएगा। खराब हालात रहे तो भी सपा सबसे बड़ी पार्टी रहेगी। ऐसे में सीएम को अभी बसपा से दोस्ती की पेशकश नहीं करनी चाहिए थी।एक अन्य नेता कहते हैं, संभावना कम है, लेकिन यदि भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल हो गया तो सपा-बसपा दोस्ती लायक भी नहीं बचेंगे।
ऐसे में यदि सीएम का बयान मतगणना का रुझान देखने या परिणाम आने के बाद आता तो बेहतर रहता। इस बयान का यह भी अर्थ निकाला जा रहा है कि सपा ने चुनाव में हार स्वीकार कर ली है।
बसपा के दूसरी कतार के नेताओं की ओर से इस तरह के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि वे पार्टी सुप्रीमो के रुख के बाद ही इसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करने की बात कर रहे हैं। कई बसपा नेता इसमें भी एक अवसर देख रहे हैं।उनका कहना है कि भविष्य की राजनीति के मद्देनजर भी ऐसा करना सभी के लिए जरूरी होगा। हालांकि ऐसे लोग यह जरूर कहते हैं कि यह नीतिगत मामला है और इस पर अंतिम निर्णय बसपा सुप्रीमो को ही करना है। चुनाव के अंतिम नतीजे के बाद की परिस्थितियों के हिसाब से वह अवश्य कोई फैसला लेंगी।
बसपा कांग्रेस की सरकारों को समर्थन देती रही है। पर, यदि नतीजे त्रिशंकु वाली स्थिति में आते हैं तो राष्ट्रपति शासन से बचने और सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर काम करना होगा। इसके लिए बहुत सारे विकल्प हो सकते हैं।एक अन्य नेता कहते हैं कि बहनजी ने अल्पसंख्यकों को आश्वासन दिया है कि वह बहुमत न मिलने पर भाजपा के साथ नहीं जाएंगी, विपक्ष में बैठना पसंद करेंगी। ऐसे में एक बात यह तो तय है कि परिणाम कैसे भी आएं, बसपा भाजपा के साथ किसी भी कीमत पर नहीं जाएगी।
उन्होंने कहा कि वैसे भी सपा अब मुलायम सिंह यादव वाली नहीं है जिनके जमाने में गेस्ट हाउस कांड हुआ था। अब सपा अखिलेश यादव वाली है जिससे मुलायम सिंह यादव का ज्यादा वास्ता नहीं है। साथ ही इसके साथ कांग्रेस भी जुड़ी है।एक अहम बात ये भी है कि बसपा से हाथ मिलाने का प्रस्ताव अखिलेश यादव कर रहे हैं, न कि बसपा। ऐसी परिस्थितियों में यदि सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए कोई स्थिति आती है तो देखा जाएगा। हालांकि बसपा किसी के साथ तभी जाएगी जब मुख्यमंत्री बहनजी को बनाया जाए। इस पर निर्णय बहनजी करेंगी।
मेहरोत्रा का कहना है कि कांग्रेस ने कई जगह हराने की कोशिश की। कांग्रेस की बगावत से भाजपा को फायदा हुआ। इसे उन्होंने निजी विचार बताया है।गौरतलब है कि गठबंधन के बावजूद लखनऊ मध्य सीट पर रविदास के खिलाफ कांग्रेस के मारूफ खान ने चुनाव लड़ा है। इससे मुस्लिम वोटों का बंटवारा होने की संभावना जताई जा रही है। इससे भाजपा को मदद पहुंच सकती है।