पाकिस्तान के बाद श्रीलंका भी चीन के कर्ज के जाल में पूरी तरह फंस चुका है। चीन धीरे-धीरे अब श्रीलंका की बुनियादी सुविधाओं पर अपना कब्जा जमा रहा है और अब श्रीलंका में चीन के कुछ सैनिकों को देखा गया है। ये सैनिक सेना की वर्दी में हंबनटोटा के एक तालाब में जमा मलबा निकाल रहे थे।
ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक, हंबनटोटा के एक प्राचीन तालाब में हाल ही में चीन के कुछ लोगों को मलबा हटाते देखा गया और इन सबने जो वर्दी पहनी थी वह चीन की सैन्य वर्दी से मेल खाती थी। श्रीलंका के कानून के मुताबिक, सेना में काम न कर रहे लोगों के वर्दी पहनने तो क्या उसे रखने तक पर भी प्रतिबंध है। इस पर उस व्यक्ति को गिरफ्तार करके दंडित किया जा सकता है।
इस खुलासे के बाद एक बार फिर से श्रीलंका में चीन की दखलअंदाजी की पोल खुल गई है। हाल ही में चीन ने कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट को भी 99 सालों के लिए अपने कब्जे में कर लिया है।
मलबा निकालते देखे गए चीनी जवानों का वर्दी में होना श्रीलंकाई कानूनों के खिलाफ है। हालांकि, आदतन श्रीलंका में मौजूद चीनी दूतावास ने आरोपों को खारिज किया और कहा है कि इस तरह के कपड़े पहनना आम बात है।
पाकिस्तान में भी चीन ने चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर की निगरानी के लिए कई सैन्य कंपनियां तैनात की हुई हैं। True Ceylon की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर चीन अपने सैनिकों को आम नागरिकों की तरह हंबनटोटा की निगरानी के लिए तैनात करता है तो यह श्रीलंका के लिए हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए।
हालांकि, श्रीलंका की विपक्षी पार्टियों ने चीनी सैन्य वर्दी में मौजूद विदेशियों को लेकर सवाल खड़े किए हैं। ऐसे कई सबूत हैं, जिससे साबित होता है कि लोगों ने जो वर्दी पहनी थी वह चीनी सेना की थी। इतना ही नहीं, मलबा खोदने का काम भी श्रीलंका के पुरातत्व विभाग से मंजूरी लिए बिना ही किया गया। जैसे ही इसका फुटेज वायरल हुआ, काम को रोकना पड़ा। श्रीलंका के सांसद और फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजे गए सरथ फोन्सेका ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि चीन की सेना के जवान और अधिकारी देश के भीतर घुसकर काम कर रहे हैं।
श्रीलंका की सरकार ने कुछ दिनों पहले ही कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट पर चीन के साथ समझौता किया था। चीन को कोलंबो पोर्ट सिटी तैयार करने का जिम्मा मिला है और 99 साल तक उसका संचालन भी बीजिंग के ही पास रहेगा। इस सिटी में चीन की इजाजात से ही लोग आ-जा सकेंगे। विरोधियों ने इस प्रोजेक्ट को श्रीलंका की संप्रभुता के खिलाफ बताया है।
हालांकि, श्रीलंका कैबिनेट के प्रवक्ता केहेलिया रंबुकवेला ने देश में चीनी सेना की मौजूदगी की रिपोर्ट को खारिज किया। उन्होंने दावा किया कि 29 जून को चीनी वर्करों ने जो यूनिफॉर्म पहनी थी वह लोकल वर्कशॉप में काम करने वाले श्रीलंकाई वर्करों की वर्दी जैसी ही थी।
इससे पहले पिछले महीने ही श्रीलंका में कोरोना टीके को लेकर चीन की खूब आलोचना हुई थी। दरअसल, चीन ने अपनी सिनोफार्म कोविड-19 वैक्सीन बांग्लादेश को जहां 10 डॉलर प्रति खुराक पर बेची थी तो वहीं श्रीलंका को इसके लिए 15 डॉलर देने पड़े थे। इसके बाद श्रीलंका के स्थानीय नेताओं ने इसका विरोध किया था।
श्रीलंका के हाई-प्रोफाइल प्रोजेक्ट्स पर चीन के बढ़ते नियंत्रण से एक बार फिर से यह डर बढ़ गया है कि यह देश बीजिंग का उपनिवेश बनकर रह जाएगा।