बिहार में चकबंदी के लिए नया सॉफ्टवेयर बनाने का काम जल्द शुरू होगा। इसके लिए आईआईटी रूड़की से करार के प्रस्ताव पर वित्त विभाग ने भी मुहर लगा दी। प्रस्ताव विभाग के विधि शाखा में भेजा गया है। सभी तकनीकी पहलुओं पर विचार करने के बाद वहां से कैबिनेट जाएगा। कैबिनेट की मुहर लगने के बाद आईआईटी रुड़की के तकनीकी कर्मी इसे अमलीजामा पहनाने में जुटेंगे। वहां के 200 तकनीकी कर्मियों की टीम बिहार आकर चकबंदी के लिए सॉफ्टवेयर बनाने के काम को धरातल पर उतारेगी।
राज्य में पहले भी चंकबंदी हुई है। लेकिन, पहली बार इसके लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होने जा रहा है। इसके लिए सॉफ़्टवेयर बनाने को निदेशालय में लैब का निर्माण किया जाएगा। वहां चकबंदी के लिए ‘चक बिहार’ सॉफ्टवेयर विकसित होगा। आईआईटी द्वारा विकसित इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल के लिए टीम लोगों को प्रशिक्षित भी करेगी। इस सॉफ्टवेयर के बनने से चकबंदी के काम में मानवीय हस्तक्षेप काफी कम हो जाएगा। पहले जो काम 100 फीसदी अमीन और दूसरे कर्मियों द्वारा किया जाता था, उस काम में मानवीय हस्तक्षेप घटकर अब महज 20 फीसदी रह जाएगा। 80 फीसदी काम अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से किया जाएगा।
एक साल में 12 हजार गांवों की चकबंदी का लक्ष्य
करार के जिस प्रस्ताव पर सहमति बनी है, उसके मुताबिक एक साल में 12 हजार गांवों की चकबंदी का लक्ष्य है। अगर सबकुछ ठीकठाक से चला तो इस तरह पूरे बिहार के सभी मौजों की चकबंदी के काम में करीब चार वर्षों का समय लगेगा। इसके पहले आईआईटी रुड़की के काम को देखने के लिए कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल के कनैरा कम्हारी गांव का पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चयन किया। निदेशालय ने सर्वे और चकबंदी के खतियान और नक्शे को रुड़की भेजा। रुड़की के लैब में दोनों को पहले डिजिटाइज्ड किया गया। फिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीप लर्निंग की मदद से उनका चक काटा गया। बाद में विभाग में उसका प्रेजेंटेशन किया गया। उसके बाद विभाग ने पूरी तकनीक पर अपनी मुहर लगा दी और आईआईटी के साथ करार करने का फैसला किया।