बिहार समेत पूरा देश कोरोनाकाल से गुजरा है, जिसने पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। गांव-समाज, व्यक्ति और सरकार की चुनौतियां बेतहाशा बढ़ी हैं। बावजूद इसके पिछले साल की तुलना में पुनरीक्षित बजट से करीब 7100 करोड़ कम का बजट बिहार सरकार ने लाया है। पिछले साल का पुनरीक्षित बजट 225458 करोड़ रुपए था, जबकि इस साल का बजट 218302 करोड़ रुपए ही है।
इस बजट में गरीबी मिटाने और कोरोना के चलते बड़ी संख्या में पलायित होकर आए प्रवासी भाई-बंधुओं की जीविका चलाने के लिए कुछ भी नहीं है। सरकार लाखों रोजगार देने की बात तो करती है लेकिन उसके लिए बजट में कोई रूट चार्ट नहीं है। वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद ने भले ही पहला बजट पेश किया हो लेकिन उत्तर बिहार को इस बजट से काफी उम्मीदें थी। बजट में क्षेत्रीय विषमता से निपटने की मंशा नहीं दिख रही। कहीं-कोई प्रावधान भी नहीं दिख रहा। खासतौर से पिछड़ा क्षेत्र मिथिला के विकास के लिए प्रावधान की उम्मीद थी।
बिहार सरकार के पूरे बजट की अवधारणा घाटे पर केन्द्रित है। मांग सृजित होने से लोगों को राहत मिलती है, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं हुई है। पूंजीगत व्यय सरकार की मंशा को दर्शाता है। लेकिन 2020-21 के पुनरीक्षित बजट की तुलना में पूंजीगत व्यय भी घटा है। यह 46031 की तुलना में बजट में 41231 करोड़ ही है। राज्य सरकार के राजस्व संग्रह में भी कमी आई है। आमदनी का कोई नया रिर्सोस नहीं किया गया है। ऐसे में यह कहना कि बिहार का विकास हो रहा है, एकतरफा बात हो गई।
बजट की समीक्षा से पता चलता है कि केन्द्र पर निर्भरता बढ़ी है। पूंजीगत प्राप्ति भी घट रहा है। कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य में चौंकाने या राहत देने जैसी कोई चीज नहीं दिख रही। अलबत्ता तीन नए विवि की स्थापना अच्छी पहल है। महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए की गई पहल स्वागत योग्य कदम है। पर उद्योग विभाग के लिए जितनी कम राशि दी गई है, उससे न तो बिहार का औद्योगिकरण होगा और न ही रोजगार सृजन हो सकेगा।