बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को बने लगभग एक महीना होने जा रहा है, लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल विस्तार नहीं होने से राजनीतिक गलियारे में सवाल उठने लगे हैं। अटकलें लगाई जा रही है कि मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर एनडीए के दोनों प्रमुख घटक दल जेडीयू और भाजपा के बीच अभी विभागों के लेकर तालमेल नहीं बन पा रहा है।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जेडीयू मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर खुद रुचि नहीं दिखा रहा है। वजह साफ है कि यदि कैबिनेट विस्तार होगा तो जेडीयू के मुकाबले भाजपा के अधिक विधायक मंत्री बनेंगे। मंत्री नहीं बनने वाले विधायकों की नाराजगी जेडीयू मोल नहीं लेना चाहता है। मौजूदा विधानसभा में भाजपा के पास 74 और जेडीयू के पास 43 विधायक हैं।
उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद, अशोक चौधरी जैसे वरिष्ठ मंत्रियों के पास पांच-पांच मंत्रालयों का भार है। कई ऐसे मंत्री भी हैं जिनके पास दो से तीन मंत्रालय है।पिछले दिनों भ्रष्टाचार के आरोप के बाद शिक्षा मंत्री मेवा लाल चौधरी को इस्तीफा देना पड़ा था। जिससे एक सीट पहले से ही खाली है। शिक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार इस समय अशोक चौधरी के पास है। जोकि नीतीश कुमार के करीबी नेता माने जाते हैं। इस बीच माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार पर कुछ महत्वपूर्ण निर्णय 27 दिसंबर को जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में लिए जा सकता है। वहीं एनडीए सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल विस्तार 17वीं विधानसभा के पहले सत्र के समापन के तुरंत बाद होने वाला था, जो नवंबर के अंतिम सप्ताह में आयोजित किया गया था।
वहीं जानकारों का मानना है कि अगर 15 दिसंबर तक कैबिनेट विस्तार नहीं होता है, तो यह जनवरी के मध्य में किया जाएगा, क्योंकि खरमास की अवधि- 14 दिसंबर से लेकर 14 जनवरी तक- ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार कुछ भी नया करने के लिए शुभ नहीं माना जाता है।
इस बीच, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि बिहार में कैबिनेट का विस्तार सही समय पर होगा और इसे लेकर जदयू और भाजपा के बीच मीडिया में जो मनमुटाव की खबरें चल रहीं हैं वह बेबुनियाद हैं। वहीं जदयू के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन ने भी कहा है कि कैबिनेट विस्तार सही समय पर होगा और हर किसी को इसके बारे में पता चल जाएगा। उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल का विस्तार मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है और एनडीए के स्तर पर निर्णय लिया जाएगा।