प्रियंका ने उस भाषण में एक नहीं कई बार यह बात कही कि आपने अपने राजीव की पीठ पर छूरा घोपने वाले को उनके घर में घुसने कैसे दिया। प्रियंका के इस भावुक भाषण ने पूरा समीकरण ही बदल दिया। पिछले चुनाव में जमानत गंवाने वाली कांग्रेस यहां अच्छे अंतर से जीती।
उस चुनाव के बाद से प्रियंका रायबरेली के लिए खासमखास बन गईं। 2014 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट सोनिया की हो गई और अमेठी राहुल ने संभाल ली। 99 के बाद से ऐसा कोई चुनाव नहीं रहा जिसमें प्रियंका पहुंची न हों। प्रियंका का चुनाव प्रचार करने का स्टाईल हारे हुए प्रत्याशी को जीत नसीब करा देता। सोनिया यदि बड़े अंतर से जीतती रहीं तो इसके पीछे की बड़ी वजह प्रियंका गांधी रही हैं।
अब 18 साल के बाद पहला ऐसा मौका आ रहा है जब लोकसभा और विधानसभा चुनावों में प्रियंका रायबरेली और अमेठी में नहीं होंगी।
प्रियंका भी इस बात को अच्छी तरह समझती हैं इसलिए हर चुनावों में वह मां और भाई के कंधा से कंधा मिलाकर पार्टी के लिए प्रचार करती नजर आती हैं। लोकसभा चुनावों में तो वो रायबरेली और अमेठी में मां और भाई के चुनावों का प्रबंधन खुद ही संभालती हैं, दोनों ही जिलों में कार्यकर्ताओं के बीच उनकी जबरदस्त लोकप्रियता तो है ही प्रियंका का भी यहां से खास लगाव है।
लेकिन 18 सालों में पहली बार देखने को आ रहा है कि विधानसभा जैसे महत्वपूर्ण चुनावों के बाद भी प्रियंका ने एक बार भी इधर का रुख नहीं किया है। अमेठी रायबरेली को लेकर प्रियंका की बेरुखी कई सवाल खड़े कर रही है।