18 साल में पहली बार अमेठी में प्रचार से क्यों बच रही हैं प्रियंका ?

priyanka-ggandhi_1485346906ये 1999 लोकसभा चुनावों की बात है। कांग्रेस पचमढ़ी के अधिवेशन में ‘एकला चलो रे’ का नारा देकर निकली थी। सोनिया गांधी कांग्रेस की अगुवाई कर रही थीं और खुद अमेठी सीट से चुनाव लड़ रही थीं। इंदिरा गांधी की विरासत वाली रायबरेली सीट से गांधी परिवार के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़ रहे थे। इस चुनाव के पहले 96 और 98 के दोनों चुनावों में कांग्रेस इस सीट से अपनी जमानत गंवा चुकी थी। कैप्टन सतीश शर्मा एक ऐसी सीट से चुनाव लड़ने के ‌लिए आए थे जो कहने को तो कांग्रेस का गढ़ थी लेकिन वहां का ग्रास रूट लेवल का कार्यकर्ता पूरी तरह से गायब हो चुका  था। 
इस चुनाव में कैप्टन के मुकाबले बीजेपी के अरुण नेहरू थे। वही अरुण नेहरू जो कभी राजीव गांधी के खास हुआ करते थे। चुनाव बीजेपी के पक्ष में था। अटल बिहारी वाजपेयी की लहर वाली बीजेपी आक्रामक थी। इन्हीं किसी दिन में राजीव गांधी की बेटी की जनसभा रायबरेली के जीआईसी मैदान में हुई। तब तक प्रियंका की अपनी कोई पहचान नहीं थी। यह उनकी पहली रैली थी और उन्होंने बिना लिखा भाषण पढ़ा था। इस भाषण की लोकप्रियता इस बात से समझ सकते हैं कि इसकी ऑडियो रिकार्डिंग तब सीडी के जरिए दुकानों में बिकनी शुरू हो गई थी। यह वाट्सअप का युग नहीं था और न ही फेसबुक पर ट्रोल कराने का।

प्रियंका ने उस भाषण में एक नहीं कई बार यह बात कही कि आपने अपने राजीव की पीठ पर छूरा घोपने वाले को उनके घर में घुसने कैसे दिया। प्रियंका के इस भावुक भाषण ने पूरा समीकरण ही बदल दिया। पिछले चुनाव में जमानत गंवाने वाली कांग्रेस यहां अच्छे अंतर से जीती। 

उस चुनाव के बाद से प्रियंका रायबरेली के लिए खासमखास बन गईं। 2014 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट सोनिया की हो गई और अमेठी राहुल ने संभाल ली। 99 के बाद से ऐसा कोई चुनाव नहीं रहा जिसमें प्रियंका पहुंची न हों। प्रियंका का चुनाव प्रचार करने का स्टाईल हारे हुए प्रत्याशी को जीत नसीब करा देता। सोनिया यदि बड़े अंतर से जीतती रहीं तो इसके पीछे की बड़ी वजह प्रियंका गांधी रही हैं। 

अब 18 साल के बाद पहला ऐसा मौका आ रहा है जब लोकसभा और विधानसभा चुनावों में प्रियंका रायबरेली और अमेठी में नहीं होंगी। 

प्रियंका भी इस बात को अच्छी तरह समझती हैं इसलिए हर चुनावों में वह मां और भाई के कंधा से कंधा मिलाकर पार्टी के लिए प्रचार करती नजर आती हैं। लोकसभा चुनावों में तो वो रायबरेली और अमेठी में मां और भाई के चुनावों का प्रबंधन खुद ही संभालती हैं, दोनों ही जिलों में कार्यकर्ताओं के बीच उनकी जबरदस्त लोकप्रियता तो है ही प्रियंका का भी यहां से खास लगाव है।

लेकिन 18 सालों में पहली बार देखने को आ रहा है कि विधानसभा जैसे महत्वपूर्ण चुनावों के बाद भी प्रियंका ने एक बार भी इधर का रुख नहीं किया है। अमेठी रायबरेली को लेकर प्रियंका की बेरुखी कई सवाल खड़े कर रही है। 

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