मस्जिदों में लाउड स्पीकर की अनुमति दी तो सामाजिक संतुलन बिगड़ सकता हैः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Image result for allahabad high court image

यूपी के एक गांव में मस्जिदों पर लाउडस्पीकर और एम्प्लीफायर लगाने पर एसडीएम द्वारा लगाई रोक हटाने से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया। अदालत ने एसडीएस के आदेश में विशेष न्यायिक क्षेत्राधिकार का उपयोग करते हुए हस्तक्षेप करने से यह कहते हुए इनकार किया कि ऐसा करने पर सामाजिक असंतुलन खड़ा हो सकता है। एसडीएम ने दो समुदायों के बीच विवाद को रोकने के लिए किसी भी धार्मिक स्थल पर इन उपकरण को न लगाने का आदेश दिया था।

याचिका करने वालों की दलील थी कि वे मस्जिदों में रोजाना पांच बार दो मिनट के लिए इन उपकरणों के प्रयोग की अनुमति चाहते हैं। दावा था कि इससे प्रदूषण या शांति व्यवस्था को खतरा नहीं है। यह उनके धार्मिक कार्यों का हिस्सा है, बढ़ती आबादी की वजह से लोगों को लाउडस्पीकर के जरिए नमाज के लिए बुलाना जरूरी हो जाता है।

इसे नकारते हुए जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित ने कहा कि निश्चित रूप से संविधान का अनुच्छेद 25 (1) सभी नागरिकों को अपने धर्म को मानने और उसका प्रचार करने की अनुमति देता है। दूसरी ओर यह बुनियादी मूल्य है कि हाईकोर्ट को सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए उचित ढंग से अपने विशेष न्यायिक क्षेत्राधिकार का उपयोग करना चाहिए। मौजूदा मामले में यह साफ है कि ऐसा कराने की जरूरत नहीं है। इससे सामाजिक असंतुलन पैदा हो सकता है।

इन आदेशों का हवाला दिया
अपने आदेश में हाईकोर्ट ने पूर्व में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया। इनमें यह प्रमुख थे –
अधिकार निरंकुश नहीं- आचार्य महाराजश्री मामला, सुप्रीम कोर्ट
‘एक संगठित समाज में कोई भी अधिकार निरंकुश नहीं होता। एक पक्ष का आनंद दूसरे पक्ष के आनंद से सुसंगत होना चाहिए। जब सामाजिक शक्तियों को मिले खुलेपन से समाज में सौहार्द नहीं बन पाए और हित आपस में टकराएं तो सरकार को असंतुलन खत्म करने के लिए कदम उठाना होता है। व्यक्ति के मूल अधिकार दूसरों के मूल अधिकारों के सामंजस्य में होते हैं, इन पर सरकार की विवेकपूर्ण व उचित शक्ति भी लागू होती है।’

धर्म नहीं कहता लाउड स्पीकर बजाने के लिए – चर्च ऑफ गॉड मामला, सुप्रीम कोर्ट
‘धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार नागरिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य से जुड़े हैं। कोई भी मजहब नहीं सिखाता कि प्रार्थना के लिए लाउडस्पीकर व एम्प्लीफायर लगाएं या ढोल बजाए जाएं। अगर ऐसा किया भी जाए तो इससे दूसरों के अधिकार प्रभावित नहीं होने चाहिए।’

आपका धर्म दूसरे की निजता प्रभावित नहीं कर सकता – संत कुमार व अन्य मामला, हाईकोर्ट खंडपीठ
‘धर्म का पालन करना मूल अधिकार है, लेकिन इसे निजता के अधिकार के साथ माना जाना चाहिए। किसी को भी अपने धर्म का पालन इस प्रकार करने का अधिकार नहीं है कि वह दूसरे की निजता का उल्लंघन करने लगे। ऐसे में लोग धार्मिक कामों जैसे अखंड रामायण, कीर्तन आदि में लाउडस्पीकर से दूर रहें, इससे लोगों को तकलीफ होती है।’

शांति जैविक जरूरत – फरद के वाडिया मामला, सुप्रीम कोर्ट
‘शांति, नींद और व आराम हमारी जैविक जरूरतें हैं। मानव अधिकारों का हिस्सा हैं।’

ध्वनि प्रदूषण का खतरा भारत के लोग समझ नहीं पा रहे

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि ‘एक ओर अमेरिका, इंग्लैंड और अन्य विकसित देशों में लोग ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए कार का हॉर्न भी बजाने से बचते हैं, इसे खराब व्यवहार मान रहे हैं। वहीं भारत में लोग अब भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि शोर भी प्रदूषण है। इससे सेहत को नुकसान होता है।’ हाईकोर्ट ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण से बहरापन, हाई बीपी, अवसाद, थकान, और लोगों में चिड़चिड़ापन हो सकता है। अधिक शोर हृदय व दिमाग को नुकसान करता है।

अनुमति के बिना लाउड स्पीकर नहीं बजा सकते
हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में ध्वनि प्रदूषण (रोकथाम व नियंत्रण) नियमावली 2000 में बनाई थी। इनके अनुसार हॉर्न, तेज ध्वनि पैदा करने वाले उपकरण, लाउड स्पीकर, आदि पर जगहों के अनुसार प्रतिबंध लगाए गए हैं। ऐसे में बिना पूर्व अनुमति के इनका इस्तेमाल नहीं किया सकता। इस अनुमति के लिए केंद्र या प्रदेश सरकार डीएम, पुलिस आयुक्त या कम से कम डीएसपी स्तर के अधिकारी को नामित कर सकती है।

अधिकारियों-नागरिकों, सभी का दायित्व है भाईचारा बढ़ाना
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों को कानून व्यवस्था बनाए रखने के दायित्व दिए गए हैं। किसी घटना से तनाव होता है, वे उसे सुलझाते हैं, तनाव घटाना भी उनके जिम्मे है। संविधान मूल कर्तव्यों में अधिकारियों सहित हर नागरिक से अपेक्षा करता है कि वे सामाजिक सौहार्द व भाईचारे को बढ़ावा देंगे। इसमें धार्मिक, भाषाई या जातिगत विविधताओं को बाधा नहीं बनने देंगे। शांति बिगाड़ने वाले हर घटनाक्रम को रोकेंगे।

बद्दोपुर गांव का मामला ऐसा था
याचिका में जौनपुर की शाहगंज तहसील के बद्दोपुर गांव के मसरूर अहमद व अन्य मुस्लिम समुदाय के नागरिकों ने बताया था कि एसडीएम ने मस्जिद अबू बकर सिद्दीकी में लाउड स्पीकर और एम्प्लीफायर लगाने की अनुमति 15 जनवरी से 14 जुलाई 2018 तक के लिए दी थी। क्षेत्र में ही मौजूद एक अन्य मस्जिद रहमानी के लिए ऐसी कोई अनुमति नहीं ली गई थी। कुछ समय बाद रिपेयर करने के लिए उपकरण हटाए गए। जब इन्हें वापस लगाया जा रहा था तो क्षेत्रीय पुलिस ने उन्हें रोक दिया। मसरूर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने मार्च 2019 में याची को निर्देश दिए कि वे अनुमति के लिए एसडीएम को फिर से अर्जी दें। यह अर्जी दी गई और एसडीएम ने शाहगंज के सीओ से रिपोर्ट मंगवाई। सीओ ने मई 2019 में रिपोर्ट दी कि क्षेत्र में हिंदू व मुस्लिम समुदायों की मिलीजुली आबादी रहती है। एक पक्ष को लाउड स्पीकर लगाने की अनुमति दी तो क्षेत्र की शांति प्रभावित होगी। एसडीएम और सीओ ने गांव का दौरा किया और पाया कि साउंड एम्प्लीफायर की वजह से क्षेत्र में तनाव है। ऐसे में एसडीएम ने किसी भी धर्म स्थल पर ये उपकरण लगाने की अनुमति नहीं दी।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com