बिहार में व्यवस्था को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो की जाती हैं लेकिन धरातल पर उतरने से पहले अफसरशाही की भेंट चढ़ जाती है। ऐसी एक व्यवस्था फिर शर्मसार! पूरे प्रदेश में सभी मरीजों के लिए एम्बुलेंस सेवा मुफ्त करने के 15 दिनों के भीतर ही एक वृद्धा के शव को ले जाने के लिए एम्बुलेंस नसीब नहीं हुआ।
तमाम चिरौरी के बाद भी जब व्यवस्था का दिल नहीं पसीजा तो आर्थिक संकट से जूझ रहे परिजन शव को ई रिक्शा से अस्पताल से तीन किमी दूर काजी मोहम्मदपुर थाना क्षेत्र स्थित अपने घर ले गए। अधिकारियों की इस लापरवाही पर पहले तो सभी ने चुप्पी साध ली, लेकिन जब मामला तूल पकड़ा तो उपाधीक्षक को जांच के आदेश दिए गए।
दरअसल ये घटना सोमवार की है जब काजीमोहम्मदपुर थाना क्षेत्र के एक व़द्ध महिला की तबीयत बिगड़ गई। परिजन उसे किसी तरह लेकर सदर अस्पताल के लिए चले। इस बीच महिला ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। अस्पताल पहुंचने पर इमरजेंसी वार्ड में चिकित्सक ने महिला को मृत घोषित कर दिया। समस्या इसके बाद शुरू हुई। आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिजन ने अधिकारियों और चिकित्सकों से एम्बुलेंस या शव वाहन देने की गुहार लगायी। इमरजेंसी के सामने खड़ी एम्बुलेंस के चालक से भी विनती की गई। लेकिन, किसी ने उसकी एक न सुनी। उसके बाद उसने फोन से अपने मोहल्ले के लोगों से मदद मांगी तो सभी ने उसे भाड़े पर वाहन कर शव लाने की सलाह दी।
मोहल्लावासियों ने आश्वस्त किया कि शव पहुंचने के साथ ही वाहन को उसका किराया दे दिया जाएगा। इसके बाद मृत वृद्धा के बेटे ने एक ई रिक्शा को बुलाया और किसी तरह उसी पर शव को रखकर घर ले गये। आरोप है कि घटना के वक्त सिविल सर्जन अपने कार्यालय में मौजूद थे और शव के जाने के कुछ देर बाद अपने कार्यालय से निकले। मामले में सिविल सर्जन डॉ. हरेंद्र आलोक ने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी शाम में मिली है। कहा कि इस मामले की जांच के आदेश दिए गए हैं। उपाधीक्षक की जांच में यदि मामला सही पाया जाता है तो दोषी कर्मचारी व अधिकारी पर कार्रवाई की जाएगी।