बिहार में मौसम अनुकूल खेती के लिए चयनित सभी 190 गांवों में जिलेभर के किसान जुटेंगे। उन गांवों में कृषि विभाग ‘खेत पाठशाला’ लगाएगा। वैज्ञानिक इस नई तकनीक की थ्योरी पढ़ाएंगे और काम में लगे किसान प्रैक्टिकल कर दिखाएंगे। उद्देश्य है मौसम में बदलाव के अनुसार जल्द से जल्द किसान खेती के पैटर्न को भी बदल लें। इसी के लिए सरकार मौसम अनुकूल खेती को एक आंदोलन का रूप देना चाहती है। ‘खेत पाठशाला’ उसका सबसे बड़ा औजार होगा।
मौसम में बदलाव का असर खेती किसानी पर तेजी से पड़ने लगा है। असमय और अनियमित वर्षा से कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ की स्थिति बन जाती है। ऐसी विपदा झेलने वाले किसानों की सहायता में सरकार को हर वर्ष अरबों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। लिहाजा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मौसम के अनुसार खेती में बदलाव की तकनीक को जल्द से जल्द जमीन पर उतारने का निर्देश दिया है।निर्देश के आलोक में कृषि सचिव डॉ. एन सरवण कुमार ने नई तकनीक से जिन गांवों में खेती हो रही है, वहां किसानों को ले जाकर पूरी तकनीक से अवगत कराने का फैसला किया है। गांवों में पाठशाला लगाने के साथ कृषि विभाग किसानों को पूसा के बीसा फार्म भी ले जाएगा। साथ ही, वहां के वैज्ञानिकों से किसानों की बात कराएगा। उसी फार्म में हो रही खेती को देख मुख्यमंत्री ने इसके विस्तार की योजना बनाई थी।
तकनीक से गेहूं उत्पादन में ड्योढ़ा वृद्धि
कृषि की बड़ी संस्थाओं की देखरेख में पहले साल सिर्फ आठ जिलों में इस तकनीक का प्रयोग हुआ। सफलता मिली तो गेहूं के उत्पादन में ड्योढ़ा वृद्धि हुई। लिहाजा इस वर्ष से रबी मौसम में इसे सभी जिलों में लागू कर दिया गया। सभी जिले के चयनित पांच-पांच गांवों में 623 एकड़ में वैज्ञानिकों की देखरेख में खेती शुरू है, लेकिन सरकार की मंशा है कि हर किसान इस तकनीक को अपनाए। खेती की इस नई योजना में यह तय है कि साल के 365 दिन खेत में फसल रहेगी। इसके लिए जोन और मिट्टी की संरचना के अनुसार वैज्ञानिक अपने क्षेत्र के लिए फसल और उसकी किस्म का चयन करेंगे। सरकार ने अलग- अलग तरह की फसलों के साथ नया फसल चक्र भी बनाया है। पांच साल तक चयनित खेतों की जुताई नहीं होगी।
योजना एक नजर में
38 जिलों में शुरू है मौसम के अनुकूल खेती
05 गांव चुने गए हर जिले में इस तकनीक को
623 एकड़ में हो रहा हर जिले में प्रत्याक्षण
05 साल तक वैज्ञानिक खेती करेंगे किसान