बिहार में ऑनलाइन म्यूटेशन व्यवस्था का हाल, 5 प्रतिशत मामले भी समय पर नहीं निपटाए जा रहे

बिहार में ऑनलाइन व्यवस्था करने के बाद म्यूटेशन के लिए याचिकाओं की संख्या तो बढ़ गई लेकिन समय पर निष्पादन का हाल अभी वही है। स्थिति यह है कि पांच प्रतिशत याचिकाएं भी समय पर निष्पादित नहीं हो पाती हैं। इसकी उपलब्धि का प्रतिशत दो अंकों में हासिल करने वाले अंचलों की संख्या गिनी-चुनी है।

राज्य में दाखिल-खारिज के आवेदन में केवल 3.46 प्रतिशत का ही निष्पादन समय पर हो सका है। यह स्थिति दिसम्बर तक की है। यह खुलासा विभाग की समीक्षा में हुआ। उस समय तक 76.64 प्रतिशत याचिकाओं का निष्पादन हो सका था, जिसमें 73.18 प्रतिशत का निष्पादन तय समय के बाद हुआ। खास बात यह है कि ऑनलाइन म्यूटेशन का निपटारा हो भी जाता है तो कर्मी जान-बूझकर त्रुटि छोड़ देते हैं। कभी नाम गलत तो कभी खाता संख्या गलत चढ़ा देते हैं। हालांकि इसके लिए सरकार ने सुधार की अलग ऑनलाइन व्यवस्था की है। लेकिन ऐसे मामलों के निपटाने की गति तो और मंद है। 
 
राज्य के सभी अंचलों को ऑनलाइन दाखिल खारिज व्यवस्था से जोड़ दिया गया है। दिसम्बर 2017 से शुरू हुआ यह काम अक्टूबर 2018 तक चरणबद्ध तरीके से पूरा किया गया। इस व्यवस्था के हो जाने से म्यूटेशन कराने की होड़-सी मच गई। पूर्वजों के नाम की जमीन को अपने नाम कराने की होड़ से याचिकाओं की संख्या डेढ़ गुनी बढ़ गई। 

वर्ष 1917-18 में जब व्यवस्था मैनुअल थी तो म्यूटेशन के लिए 13 लाख 41 हजार 734 याचिकाएं दायर की गई थी। वर्ष 2019-20 में जब व्यवस्था पूरी तरह ऑनलाइन हो गई तो याचिकाओं की संख्या 20 लाख 25 हजार 391 हो गई। गत वर्ष एक दिसम्बर 2020 तक याचिकाओं की संख्या 40 लाख 71 हजार 908 हो गई। इनमें निष्पादन 76.64 फीसदी आवेदनों का हो गया। लेकिन अधिसंख्य आवेदन का निपटारा तय समय के बाद हुआ। समय पर म्यूटेशन करने में औरंगाबाद का देव प्रखंड अव्वल है। वहां लगभग 45 प्रतिशत आवेदन का निपटरा समय पर हुआ। इसके बाद बेगूसराय के साहेबपुर कमाल और नालंदा के रहुई अंचल में लगभग 25 प्रतिशत आवेदन निटाये गये। दो अंक में उपलब्धि वाले अंचलों की संख्या एक दजर्न से अधिक नहीं है।

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