बरेलीः घरवाले पीछे हटे तो पड़ोस की युवती ने किया बुजुर्ग का अंतिम संस्कार

दस दिन के अंदर परिवार में हो गई थीं दो मौतें, भतीजा श्मशान पहुंचा मगर अंत्येष्टि करने को नहीं हुआ तैयार
बरेली। कोरोना के दौर में जान गंवाने वाले तमाम लोगों को अपनों के हाथों मुखाग्नि तक नसीब नहीं हुई। ऐसे कई मौकों पर वैसे तो कई गैरों ने मानवता का धर्म निभाया लेकिन गुलाबबाड़ी श्मशान भूमि पर कुछ दिन पहले जब एक युवती अपने पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग का अंतिम संस्कार करने पहुंची तो श्मशान भूमि के कर्मचारी भी हैरान रह गए। उस बहादुर बेटी का यह साहस उनके लिए अविस्मरणीय बन गया।
पीलीभीत बाईपास पर गुलाबबाड़ी श्मशान भूमि के परिसर प्रभारी गिरीश चंद्र सिन्हा बताते हैं कि 12 मई को आजाद नगर में रहने वाले एक युवक का कोरोना से निधन हो गया जिनका अंतिम संस्कार उनके बुजुर्ग पिता ने किया था। बेटे के दसवां संस्कार के एक ही दिन बाद रात में दस बजे उनका भी कोरोना से निधन हो गया। शव को श्मशान तक पहुंचाने के लिए पड़ोसियों को चंदा इकट्ठा कर गाड़ी का इंतजाम करना पड़ा लेकिन उनकी अंत्येष्टि करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ।

गिरीश चंद्र सिन्हा के मुताबिक मृतक बुजुर्ग की पत्नी भी गंभीर बीमारियों से ग्रसित थीं। उनकी बहू भी पति की मौत के बाद होशोहवास में नहीं थी। बुजुर्ग का भतीजा श्मशान भूमि तक पहुंचा तो मगर उनकी अंत्येष्टि करने को तैयार नहीं हुआ। उन लोगों ने उसे फटकारा तो वह चलता बना। वे लोग पशोपेश में थे कि इसी बीच दुपट्टे से मुंह ढंककर एक युवती श्मशान भूमि पहुंची। इस दौरान वहां शव लेकर आया वाहन चालक, एक कर्मचारी और खुद वह मौजूद थे।
युवती ने उन लोगों से बुजुर्ग का अंतिम संस्कार करने की पेशकश की तो वे आश्चर्यचकित हो गए। पूछताछ की तो युवती ज्यादा कुछ बताने को तैयार नहीं हुई, इतना जरूर पता चला कि वह मृतक बुजुर्ग के ही पड़ोस में रहती है। युवती ने बुजुर्ग की अंत्येष्टि के लिए लकड़ी तुलवाने के बाद शव को स्नान कराया। श्मशान भूमि के कर्मचारी की मदद चिता सजवाई और फिर शव को चिता पर रखवाकर खुद ही मुखाग्नि दी। अंत्येष्टि होते ही वह चुपचाप लौट गई।
नाम-पता नहीं बताया पर हमेशा याद रहेगी बहादुर बेटी
गिरीश चंद्र ने बताया कि उन्होंने युवती से उसका नाम-पता पूछा लेकिन उसने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। हालांकि अंतिम संस्कार कर रही युवती की उन्होंने एक फोटो जरूर ले ली। वह कौन थी, अगले दिन इसका पता करने आजाद नगर भी पहुंचे मगर वहां कोई उसे नहीं पहचान पाया। गिरीश ने बताया कि वह श्मशान भूमि में करीब 15 सालों से आ रहे हैं लेकिन पहली बार ऐसी बहादुर बेटी देखी जिसे वह कभी भूल नहीं पाएंगे।

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