पेट्रोल और डीजल के दाम में लगी आग,टैक्स के बोझ से बढ़ रहा है कीमत

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अशोक कुमार गुप्ता, लखनऊ :मोदी सरकार को लाने के पीछे अच्छे दिन का नारा ने मुख्य भूमिका निभाई . जब भाजपा विपक्ष में थी तो पेट्रोल डीजल के दामो में बढ़ोतरी को लेकर सडक से लेकर संसद तक हंगामा करती थी . लेकिन अच्छे दिन का सपना दिखाने वाली केंद्र की सरकार डेढ़ माह में चार बार डीजल पर रेट बढाकर लोगो के जेब हल्का जरुर किया है .

26 मई 2014 को अच्छे दिनों के वादे के साथ केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी. 1 जून 2014 को अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चा तेल 115 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर था और दिल्ली में पेट्रोल 72 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था. अब इसे मोदी सरकार का नसीब कह लें या कुछ और, इस दिन के बाद से अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत औंधे मुंह गिरने लगी और जनवरी 2015 आते-आते बाजार में कच्चा तेल 50 डॉलर प्रति बैरल से नीचे पहुंच गया यानी 65 डॉलर की कमी. लेकिन आम आदमी का किस्मत से कनेक्शन यहीं कट गया. बाजार के हवाले पेट्रोल और डीजल की कीमत रहने के बावजूद इस दौरान दिल्ली में महज 8 रुपये की और इसी अनुपात में बाकी के देश में पेट्रोल कीमतों में गिरावट दर्ज हुई.

कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का सिलसिला यहीं नहीं थमा. जनवरी 2015 में 48 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर यह कीमत जनवरी 2016 आते तक 30 डॉलर के नीचे पहुंच गई. कहा जाने लगा कि कच्चा तेल एक बोतल बिसलेरी मिनरल वॉटर से सस्ता हो गया. लेकिन जनवरी 2016 में दिल्ली के पंप पर पेट्रोल 60 रुपये प्रति लीटर बेचा जा रहा था.

मई में कच्चा तेल 6 डॉलर बढ़ा तो पेट्रोल में 4 रुपया

अब एक बार फिर कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूती का रुख कर रहा है. बीते हफ्ते रिकवरी करते हुए कच्चा तेल 50 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गया है. मई की शुरुआत में(6 मई) कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में 44 डॉलर प्रति बैरल पर था और 24 मई तक यह लगभग 50 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया. बाजार के जानकारों का मानना है कि तेल उत्पादन करने वाले देशों में कुछ सहमति बनने के आसार दिखाई दे रहें हैं, लिहाजा आने वाले दिनों में कीमतों में और भी मजबूती ही देखने को मिलेगी. इसके चलते देश में तेल कंपनियों ने मई महीने में ही दो बार पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा कर दिया. 1 मई को पेट्रोल की कीमत 1.06 रुपये बढ़ी तो 31 मई को सीधे 2.58 रुपये का इजाफा किया गया. यानी एक महीने में कच्चे तेल की कीमत 6 डॉलर बढ़ने पर सरकार ने सिर्फ पेट्रोल की कीमत ही करीब चार रुपये तक बढ़ा दी. यदि यही रुख रहा तो कच्चे तेल की कीमतें दो साल पहले के स्तर पर जाने पर तो घरेलू बाजार में पेट्रोल 100 रुपये से ज्यादा पर बिकेगा.

तीन  साल सरकार के ‘अच्छे दिन’

अब सवाल यह है कि जब हमने अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत पर ही देश में पेट्रोल और डीजल की कीमत निर्धारित करने का फैसला किया है तो फिर क्यों बीते तीन  साल के दौरान 90 डॉलर की गिरावट का देश में पेट्रोल की कीमतों में महज 12 रुपये की गिरावट देखी गई. इसमें कोई दो राय नहीं कि सस्ते कच्चे तेल ने देश की सरकार को एक बड़ी राहत दी और उसके खजाने में लाखों करोड़ रुपये की बचत हुई. इस बचत ने सरकार के वार्षिक घाटे को भी पाट दिया. लेकिन कच्चे तेल की कीमतों में इस गिरावट को सरकार ने सीधे आम आदमी तक नहीं पहुंचने दिया.

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पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा

आम आदमी को फायदा न पहुंचे, इसलिए बढ़ा एक्साइज और वैट

बाजार के हवाले हुई कीमतों पर सरकार एक्साइज ड्यूटी लगाती है. और सस्ते कच्चे तेल के चलते कंपनियां ग्राहकों को सस्ता पेट्रोल और डीजल न उपलब्ध करा सकें इसके लिए उसने इन दो साल के दौरान अपनी एक्साइज ड्यूटी में बड़ा इजाफा कर दिया. जहां अक्टूबर 2014 में सरकार प्रति लीटर पेट्रोल पर लगभग 9 रुपये की एक्साइज ड्यूटी वसूलती थी वहीं उसने जनवरी 2016 तक पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी को बढ़ाकर 20 रुपये प्रति लीटर तक कर दिया. इसी दौरान डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 3 रुपये प्रति लीटर से बढ़ा कर 16 रुपये प्रति लीटर कर दी गई.

इतना ही नहीं, पेट्रोल और डीजल के अच्छे दिनों को आम आदमी तक पहुंचने से रोकने में राज्य की सरकारों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. अंतरराष्ट्रीय बाजार में छाई गिरावट के बीच सब केन्द्र सरकार अपना खजाना भर रही थी तो राज्य सरकारों ने भी ईंधन पर वैट की दर को बढ़ाकर अपना-अपना खजाना भी भरने का पूरा इंतजाम कर लिया.

कच्चा तेल फिर 100 डॉलर के पार गया तो क्या सब्सिडी देगी सरकार

लिहाजा, एक बात साफ है कि बीते दो साल से अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई गिरावट उन देशों के लिए बड़ी सौगात लेकर आई जो बड़ी मात्रा में ईंधन की खरीद करते हैं. इस दौरान चीन में आर्थिक मंदी छाई रही लिहाजा बाजार में खपत नहीं थी. इसके बावजूद वहां सरकार ने इस गिरावट के दौरान अपने देश में बड़े-बड़े स्टोरेज टैंकरों का निर्माण कर लगातार सस्ते दरों पर कच्चा तेल को खरीदा है जिससे मंदी के बादल छंटने के बाद वह इसका इस्तेमाल कर सके. लेकिन अफसोस भारत में चाहे केन्द्र सरकार हो या फिर राज्य सरकारें, उन्हें अपना खजाना भरने का यह सबसे सटीक मौका लगा. अब वह चाहे कुछ भी दलील दे कि बचत के पैसों से वह अस्पताल, स्कूल, पुल और सड़क बनवा देगी, एक बात तय है कि सरकार का खजाने बढ़ने से आम आदमी के अच्छे दिनों को ग्रहण लग गया. बहरहाल, अब कच्चे तेल की कीमतें एक बार फिर बढ़ना शुरू हो चुकी है.

ऐसे में क्या सरकार से अब यह उम्मीद करना गलत है कि जब कभी कच्चे तेल की कीमत बाजार में आसमान छूने लगेगी, तो वह पेट्रोल-डीजल कीमत को बाजार के हवाले न होने देने के लिए सब्सिडी देने का काम करेगी.इसीतरह रेट बढ़ते रहे तो अन्तराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत 100 डालर प्रति बैरल हुआ तो 100  रुपया प्रति लिटर पेट्रोल आम लोगो को खरीदना पडेगा .

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