जब भारत आ रहे अफगान राष्ट्रपति को तालिबान ने रोका और दी थी भयानक सजा

मार्च 1992 में अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति नजीबुल्लाह ने अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही थी। कहा था कि उनके विकल्प की व्यवस्था होते ही वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। ये वो वक्त था जब 1989 में सोवियत सेना के जाने के बाद से नजीबुल्लाह की अफगानिस्तान पर पकड़ कमजोर हो रही थी। अलग-अलग संगठन नजीबुल्लाह को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए काम कर रहे थे।

दी ग्रेट गेम

मध्य अप्रैल 1992 तक नजीबुल्लाह ने अपनी पत्नी और बेटियों को सुरक्षित भारत पहुंचा दिया था। 17 अप्रैल को नजीबुल्लाह सीक्रेट उड़ान से भारत आने का प्लान कर रहे थे लेकिन तालिबान के कारण वह काबुल एयरपोर्ट तक नहीं पहुंच सके और वापस घर लौटने के बजाए संयुक्त राष्ट्र के कंपाउंड पहुंचे। कहा जाता है कि यहां वह ‘दी ग्रेट गेम’ किताब का अपनी मातृभाषा पश्तो में अनुवाद कर रहे थे। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र और भारत नजीबुल्लाह को सुरक्षित बाहर निकालने के प्लान पर काम कर रहे थे।

लेकिन अफगानिस्तान के तत्कालीन हालात को देखते हुए भारत सरकार ने नजीबुल्लाह को भारतीय दूतावास में शरण देने से मना कर दिया। अफगानिस्तान में भारतीय राजदूत सतीश नाम्बियार का मानना था कि नजीबुल्लाह संयुक्त राष्ट्र के ऑफिस में अधिक सुरक्षित रहेंगे। भारतीय दूतावास में शरण देने से नजीबुल्लाह की सुरक्षा के साथ ही अफगानिस्तान में रह रहे भारतीयों की सुरक्षा सहित कई दिक्कतें आ सकती थी। नजीबुल्लाह को भारत में शरण देने के मामले को लेकर भारतीय संसद में बात हुई लेकिन बात किसी मुकाम तक नहीं पहुंची।

पाकिस्तान से मदद के बजाए मरना पसंद

भारत की ना के बाद पाकिस्तान और ईरान ने भी नजीबुल्लाह को मदद की पेशकश की लेकिन इसमें नजीबुल्लाह की ना थी। उन्हें पाकिस्तान और ईरान पर भरोसा नहीं था। उनका कहना था कि पाकिस्तान और ईरान से मदद के बजाए वह मरना पसंद करेंगे।

जब तालिबान ने लैंप पोस्ट पर नजीबुल्लाह की बॉडी लटकाई

नजीबुल्लाह संयुक्त राष्ट्र के ऑफिस में करीब अगले साढ़े चार साल तक रहे। 27 सितंबर 1996 वो तारीख थी जिस दिन तालिबान के लड़ाकों ने संयुक्त राष्ट्र के ऑफिस पर हमला बोल दिया। इसके बाद नजीबुल्लाह को जबरन उनके कमरे से निकाला गया। उन्हें बुरी तरह से मारा-पीटा गया और फिर गोली मार दी गई। हत्या करने के बाद नजीबुल्लाह की बॉडी को ट्रक पर लादकर काबुल की सड़कों पर घसीटा गया और फिर क्रेन पर लटकाया गया। बाद में उनकी बॉडी को एक लैंप पोस्ट पर टांग दिया गया। 

यह एक तरह से तालिबान का शो-ऑफ था कि यह अफगानिस्तान में नए युग की शुरुआत है। तालिबान ने नजीबुल्लाह की बॉडी को इलाके में दफ़नाने तक पर रोक लगा दी। बाद में उनकी बॉडी को रेडक्रास कमिटी को सौंप दिया गया। इसके बाद उनकी बॉडी को पख़्तिया प्रदेश के गरदेज़ क्षेत्र ले जाया गया जहां अहमदज़ई समुदाय के लोगों ने उन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक किया।

अफगानिस्तान के कई लोग आजतक नजीबुल्लाह की पत्नी और बेटियों को भारत में शरण देने के लिए भारत के शुक्रगुजार हैं लेकिन इसके साथ उनलोगों की एक टीस भी है कि भारत ने नजीबुल्लाह को क्यों नहीं बचाया था।

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