बप्पा के भक्तों को गणपति पूजा का इंतजार काफी बेसब्री से रहता है, पूरे भारत में भगवान गणेश के जन्मोत्सव को उनके भक्त बेहद ही उत्साह के साथ मनाते हैं। गणेशोत्सव पर्व के दौरान भगवान गणेश के भक्त अपने घरों में उनकी मूर्ति की स्थापना करते हैं और 10 दिन विधिवत गणपति की पूजा अर्चना के बाद 11वे दिन यानी अनंत चतुर्दशी पर गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ इसका समापन होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि पहले ये पर्व सिर्फ एक दिन ही मनाया जाता था, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के पर्व के रूप में मनाया जाता था इसके बाद फिर 10 दिन गणपति पूजा की परम्परा शुरू हुई… आज हम आपको यही बता रहे हैं कि कैसे शुरू हुई 10 दिन के गणेश उत्सव की परम्परा।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व हजारों साल से मनाया जा रहा है। शिवपुराण के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीगणेश का जन्म हुआ था। जब भारत में पेशवाओं का शासन था, उस समय इस पर्व को भव्य रूप से मनाया जाने लगा। सवाई माधवराव पेशवा के शासन में पूना के प्रसिद्ध शनिवारवाड़ा नामक राजमहल में भव्य गणेशोत्सव मनाया जाता था।जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पेशवाओं के राज्य पर अधिकार कर लिया। इसके कारण गणेश उत्सव की भव्यता में कमी आने लगी, लेकिन ये परंपरा बनी रही।
कैसे शुरू हुआ 10 दिन का गणेशोत्सव
अंग्रेजो के शासन काल में युवाओं में अपने धर्म के प्रति नकारात्मकता और अंग्रेजी आचार-विचार के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा था..और हिंदू अपने धर्म के प्रति उदासी होने लगे थे। उस समय महान क्रांतिकारी व जननेता लोकमान्य तिलक ने सोचा कि हिंदू धर्म को कैसे संगठित किया जाए? लोकमान्य तिलक ने विचार किया कि श्रीगणेश ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो समाज के सभी स्तरों में पूजनीय हैं। गणेशोत्सव एक धार्मिक उत्सव होने के कारण अंग्रेज शासक भी इसमें दखल नहीं दे सकेंगे।
इसी विचार के साथ लोकमान्य तिलक ने पूना में सन् 1893 में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरूआत की। तिलक ने गणेशोत्सव को आजादी की लड़ाई के लिए एक प्रभावशाली साधन बनाया। इस संबंध में लोकमान्य तिलक ने पूना में एक सभा आयोजित की। जिसमें ये तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेश उत्सव मनाया जाए। 10 दिनों के इस उत्सव में हिंदुओं को एकजुट करने व देश को आजाद करने के लिए विभिन्न योजनाओं पर भी विचार किया जाता था।
धीरे-धीरे पूरे महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाया जाने लगा। इसके बाद महाराष्ट्र से ही दूसरे राज्यों सें गणपति पूजा की संस्कृति का संचार हुआ, अब सामूहिक रूप के साथ साथ लोग अपने अपने घरों में गणेश उत्सव को मनाने लगें हैं और गणपति पूजा कर घर में संपन्नता और सौभाग्य की मंगल कामना करते हैं।