भगत चौराहा स्थित निजी बैंक के 26 वर्षीय कर्मचारी की तबीयत 27 अप्रैल की सुबह खराब हुई। देर शाम तक उसकी हालत बिगड़ गई। सांस लेने में तकलीफ होने लगी। परिजनों ने उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां अगले दिन उसकी मौत हो गई। इसी तरह देवरिया निवासी 38 वर्षीय शिक्षक की पांच दिन पहले तबीयत खराब हुई। परिजन फौरन उसे निजी अस्पताल ले गए। जांच में संक्रमित मिला। इलाज के बावजूद उसकी हालत बिगड़ती गई। उसे बीआरडी मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया, जहां उसने दम तोड़ दिया।
डॉक्टरों ने इन दोनों की मौत की वजह हैप्पी हाइपाक्सिया बताई। कोरोना की दूसरी लहर में युवाओं के लिए हैप्पी हाइपाक्सिया जानलेवा बन गई है। इसके कारण युवाओं में संक्रमण के बावजूद शुरुआत में लक्षण नहीं सामने आ रहे हैं। लक्षण जब सामने आ रहे हैं तब 24 से 48 घंटे के अंदर ही संक्रमित युवा की हालत बिगड़ जा रही है। उसे वेंटिलेटर पर रखना पड़ रहा है। ऐसे मरीज जिनमें संक्रमण के मामूली लक्षण होते हैं या नहीं भी होते, उनमें ऑक्सीजन का स्तर लगातार नीचे चला जाता है। यही नहीं ऑक्सीजन का स्तर 70 से 80 फीसद से नीचे जाने पर भी कोविड की इस स्थिति का पता नहीं चलता, लेकिन शरीर में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर बढ़ जाता है। ऐसे में शरीर के कई महत्वपूर्ण अंग काम करना बंद कर देते हैं और अचानक कार्डियक अरेस्ट या ब्रेन हेमरेज के कारण जीवन की डोर थम जाती है।
हैप्पी हाइपाक्सिया के कारण पांच फीसदी मौतें
विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में हैप्पी हाइपाक्सिया के कारण करीब 5 फीसद मौतें हुई हैं। समय-समय पर शरीर के ऑक्सीजन स्तर की जांच करके इस स्थिति से बचा जा सकता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज व जिले के अन्य निजी अस्पतालों में कोरोना के चलते मौत का आंकड़ा 500 से ऊपर पहुंच चुका है। इसमें पांच फीसद मरीज हैप्पी हाइपाक्सिया ऑफ कोविड के शिकार बने हैं।
मरीज को नहीं होता खतरे का आभास
बीआरडी मेडिकल कालेज के टीबी एंड चेस्ट के विभागाध्यक्ष डॉ. अश्वनी मिश्रा ने बताया कि एक सामान्य व्यक्ति का ऑक्सीजन स्तर 95 से 100 फीसद के बीच होता है। मरीज के शरीर में संक्रमण होने से उसका ऑक्सीजन स्तर गिरता है पर इसका आभास उसे नहीं होता। इसी खुशफहमी की वजह से इसे हैप्पी हाइपाक्सिया कहा जाता है। ऑक्सीजन का स्तर 70 से 80 तक पहुंचने पर भी मरीज को सांस लेने में परेशानी नहीं होती।
शरीर में बढ़ जाता है कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर
फिजीशियन डॉ. गौरव पाण्डेय ने बताया कि इसमें शरीर में ऑक्सीजन घटता है और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ रहा होता है। ऐसे में फेफड़ों में सूजन आने पर ऑक्सीजन रक्त में नहीं मिल पाती। मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी से कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। अंग खराब होने लगते हैं। मरीज चिड़चिड़ा हो जाता है। अपनी धुन में रहने लगता है। ऑक्सीजन का स्तर काफी कम होने पर सांस लेने में परेशानी होती है। तब तक काफी देर हो चुकी होती है।