कोरोना काल ने बदला नजरिया: क्या फिर करीब आएंगे भारत और पाकिस्तान?

कोरोना के मामलों पर अगर गौर करें तो ये खबर ताज्जुब पैदा करती है कि पाकिस्तान उन चंद मुल्कों में है जो आंकड़ों के अंकगणित में तमाम देशों से कहीं अव्वल है। उसने कोरोना के मामले अप्रत्याशित रूप से कम कर लिए हैं। रोजाना ढाई से तीन हजार मामले आ रहे हैं और इसमें निरंतर कमी आ रही है। जबकि उससे बहुत छोटे नेपाल जैसे देश में रोजाना 9-10 हजार मामले आ रहे हैं।

दरअसल,आबादी के लिहाज से देखें तो पाकिस्तान में करीब 22 करोड़ लोग हैं तो नेपाल में महज़ तीन करोड़। बेशक पाकिस्तान अपनी उपलब्धि पर गर्व कर रहा है और भारत जैसे विशाल देश को भी ऐसे वक्त में मदद देने की पेशकश करता है। ये अलग बात है कि भारत कोरोना की दूसरी भयानक लहर से लड़ते हुए बड़ी मुश्किल से अब चार लाख रोजाना के मामलों से थोड़ा नीचे उतर पाया है।

लेकिन जहां पूरी दुनिया कोरोना के डराने वाले आंकड़ों में उलझी हुई है, वहीं पाकिस्तान को लेकर ये सवाल भी उठ रहे हैं कि आखिर ऐसा पाकिस्तानी हुकूमत ने क्या किया और तमाम मुल्क नहीं कर पाए। बेशक प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए ये खासे इत्मीनान की बात है और अवाम के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने का एक अहम जरिया भी। तो क्या पाकिस्तान आंकड़ों को लेकर कोई बड़ा खेल कर रहा है और विश्व समुदाय को ये जताने की कोशिश कर रहा है कि वह यह जंग जीत रहा है, इससे कारगर लड़ाई लड़ रहा है और बेवजह चीन से दुश्मनी न कर उसकी मदद से कोरोना महामारी को हरा चुका है?   

रणनीति और तेवर में भी खासा बदलाव
आप देखेंगे कि पाकिस्तान ने भारत को लेकर अपनी रणनीति और तेवर में भी खासा बदलाव किया है। वह बार-बार ये जताने की कोशिश कर रहा है कि वह भारत के साथ दोस्ती चाहता है और रिश्तों पर जमीं बर्फ पिघलाना चाहता है।

पिछले करीब सवा साल से 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाला भारत जिस तरह कोरोना से जंग लड़ रहा है, जिस तरह इस महामारी ने यहां अव्यवस्थाओं की पोल खोली है उससे भीतर ही भीतर सरकारें भी हिली हुई हैं। बैठकें हो रही हैं, वैक्सीनेशन को लेकर योजनाएं बन रही हैं, विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं और सरकार की नाकामियां कई मोर्चों पर सामने आ रही हैं, उससे यहां के सही आंकड़ों पर भी सवाल उठ रहे हैं और सियासत भी गर्म हो रही है।

जाहिर है पाकिस्तान इस पर बारीकी से अपनी नजर बनाए हुए है। वहां के तमाम अखबार और न्यूज वेबसाइट भारत में कोरोना से हुई मौतों, लाशों के जलाए जाने की तस्वीरें, ऑक्सीजन की कमी, वैक्सीनेशन को लेकर मारामारी से जुड़ी खबरें प्रमुखता से छाप रहे हैं, उससे साफ जाहिर है कि पाकिस्तान अवाम को ये बताने की कोशिश हो रही है कि देखिए, हमने तो कोरोना की जंग जीत ली, लेकिन भारत में क्या हालात हैं।

दरअसल, कोरोना काल के दौरान बहुत सारे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मायने बदले हैं, सोच बदली है और नज़रिया भी बदला-बदला सा लगता है। अब आप कहेंगे कि भला पाकिस्तान क्यों बदलने लगा, क्यों भला वह भारत को लेकर अपनी रणनीति और नज़रिये में बदलाव करने लगा।

एक तरह से जब से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तमाम विरोधों के बावजूद, विपक्षी एकता की तमाम नाकाम कोशिशों के बाद विश्वासमत जीता है, वो लगातार अपनी छवि बदलने में लगे हैं। पाकिस्तानी अवाम के बीच भी और पड़ोसी मुल्कों और खासकर भारत के साथ अपने रिश्ते सुधारने में लगे हैं।

कोरोना काल में एक खास बात ये जरूर हुई है कि कश्मीर का मुद्दा या फिर आतंकवाद जैसे मुद्दे हाशिये पर पहुंच गए हैं। छिटपुट घटनाएं तो जरूर होती रहती हैं, सुरक्षाबलों के जवान मारे भी जाते रहे हैं, लेकिन अब इसे काफी हद तक रुटीन की बात मान ली गई है।

क्या चल रहा है पाक के दिमाग मेंं  
इमरान खान जानते हैं कि इस वक्त उनके मुल्क समेत सारे देशों की प्राथमिकता कोरोना से कारगर जंग लड़ने की है और लोगों में ये भरोसा पैदा करने की है सरकार ऐसे मुश्किल मौके पर गंभीरता से अवाम के साथ खड़ी है, दुनियाभर से वैक्सीन के इंतजाम में लगी है, मरीज़ों को ऑक्सीजन समेत हर तरह की सुविधाएं दिलाने में लगी है और लोगों की जान बचाना उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। इसलिए आप देखेंगे कि इमरान खान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली और जनता से सीधे संवाद करने की उनकी रणनीति अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी साल फरवरी से शुरू किए गए अपने पाक्षिक कार्यक्रम ‘आपका वजीर-ए-आजम आपके साथ’ के ज़रिये इमरान खान भी मोदी के ‘मन की बात’ की तरह लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

बेशक लोगों से सीधे जुड़ने और सवालों के जवाब देने में कई बार भारत से जुड़े और खासकर कश्मीर से जुड़े तल्ख सवाल भी आते हैं और इमरान खान अपने देश की सियासत की जरूरत को समझते हुए ऐसे सवालों का जवाब देने की कोशिश करते हैं। कुछ ही दिन पहले एक सवाल फिर आया तो इमरान खान ने पश्चिमी देशों की तरफ इसे मोड़ दिया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का विषय पश्चिमी देशों का मीडिया जानबूझकर नहीं उठाता, पश्चिमी देश हमेशा से ये चाहते रहे हैं कि भारत और चीन के बीच तनाव बना रहे। इसमें उनका निजी स्वार्थ है। हालांकि चीन के साथ दुश्मनी या तल्ख रिश्तों से भारत को ही नुकसान है। इमरान ने ये भी कहा कि कश्मीर में जबतक 05 अगस्त 2019 से पहले वाली स्थिति नहीं होती, भारत के साथ बातचीत मुमकिन नहीं है।

लेकिन ये महज इमरान खान की सियासत का हिस्सा है। एक तरफ वो ये बात कहते हैं तो दूसरी तरफ उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी धारा 370 हटाने को भारत का अंदरूनी मामला करार देते हैं। उधर प्रधानमंत्री मोदी ने भी इमरान खान को जो दो पत्र भेजे उससे भी ये सवाल उठने लगा कि क्या अब दोनों देशों के बीच कुछ सकारात्मक होने की उम्मीद है। दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल ऑफ आर्मी ऑपरेशन के बीच हुई बातचीत और सीमा पर सीजफायर जैसी स्थितियां भी एक बेहतर दिशा की ओर संकेत तो देती ही हैं।

पाकिस्तान के अखबार डॉन ने एक संपादकीय भी लिखा कि अमेरिका में जो बाइडन के आने के बाद से स्थितियां बदली हैं और दोनों देश पुरानी तल्खी और तनाव को खत्म करने की दिशा में धीरे-धीरे कदम उठाने लगे हैं। इस पर तमाम दूसरे देशों की भी निगाहें हैं। उन्हें लगता है कि दोनों देशों के बीच संबंध सुधरे तो व्यापारिक रिश्तों को बेहतर करने में भी मदद मिले। ऐसे में पाकिस्तान दिवस पर भेजा गया मोदी का बधाई संदेश एक अहम कदम साबित हो सकता है।

दोनों देशों के बीच तमाम रुके हुए फैसलों और मसलों को सुलझाने की अब जरूरत है। खासकर पूरी दुनिया जब इतनी भयानक महामारी से गुजर रही हो, ऐसे वक्त में आपसी अहंकार छोड़कर दोनों देशों को दोस्ती की पहल करनी चाहिए।

जाहिर सी बात है कि इमरान खान और मोदी इसे कूटनीतिक तरीके से धीरे-धीरे सुलझाने की कोशिश में हैं। हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच पहले भी ऐसे कई मौके आए, लेकिन दोनों देशों की सियासी मजबूरियों की वजह से ये मुमकिन नहीं हो पाया। लेकिन अगर मोदी और इमरान ऐसा कुछ हदतक भी करने में सफल हो पाते हैं तो बेशक ये इतिहास में लिखा जाएगा।

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