आपने बिना ड्राइवर की कारों के बारे में सुना है. पर किसी ऐसी ट्रेन के बारे में सुना है जो ड्राइवर के बगैर चल रही हो. राजधानी दिल्ली में पिछले एक साल से एक ट्रेन ड्राइवर बिना दौड़ रही थी. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की इस पहली ड्राइवरलेस मेट्रो की शुरुआत कर रहे हैं.
इस ट्रेन को भारतीय रेलवे नहीं बल्कि दिल्ली मेट्रो चला रहा है. यह मेट्रो ट्रेन दिन में कई बार कालकाजी से बॉटेनिकल गार्डन रूट पर आती-जाती थी. उसमें ड्राइवर तो होता था, पर वह कुछ करता नहीं था. लगभग साल भर इसमें ड्राइवर रहेगा, लेकिन चलेगी वह ड्राइवरलेस तकनीक पर.
बताया गया है कि लंदन में जब पहली बार ऐसी मेट्रो चली तो यात्रियों के दबाव में उसे वापस लेना पड़ा था. धीरे-धीरे वह ऑटोमेशन मोड में आई थी. फिलहाल, सबसे पहले इसके बॉटेनिकल गार्डन नोएडा (यूपी) से कालकाजी मंदिर (दिल्ली) तक का रूट खोला जा रहा है.
आज पांच बजे से आप इसकी सवारी कर सकते हैं. सामान्य मेट्रो ट्रेनों का सेफ्टी ट्रायल ज्यादातर 4 माह में पूरा होता है पर इसका एक साल तक चला है. क्योंकि तकनीक नई है.
फिलहाल साल भर तक एहतियातन ड्राइवर रहेगा
भविष्य में ड्राइवरलेस मेट्रो फेज तीन की दो प्रमुख लाइनों, 58.59 किलोमीटर लंबी पिंक लाइन (मजलिस पार्क से शिव विहार) और 34.27 किलोमीटर की मजेंटा लाइन (जनकपुरी पश्चिम से बॉटेनिकल गार्डन) पर चलेगी.
दिल्ली मेट्रो के पीआरओ मोहिंदर यादव के मुताबिक़ देश में पहली बार ड्राइवरलेस (अनअटैंडेड ट्रेन ऑपरेशन) मेट्रो चलेगी. टेक्नोलॉजी नई है इसलिए शुरू में ट्रेन में ड्राइवर रहेगा फिर धीरे-धीरे इसे ऑटोमेशन की ओर ले जाया जाएगा. हम आपको बता रहे हैं कि आखिर ड्राइवरलेस मेट्रो की क्या खूबियां हैं.
ड्राइवरलेस ट्रेन की खासियत
इन ट्रेनों के स्टार्ट, स्टॉप और डोर ओपन-क्लोज करने में किसी भी ड्राइवर के मौजूद रहने की जरूरत नहीं है. इमरजेंसी सर्विस समेत हर तरह के ऑपरेशन को रिमोट कंट्रोल से ऑपरेट किया जा सकता है. 50 मीटर दूर ट्रैक पर कोई वस्तु है तो इसमें ब्रेक लग जाएगा. यानी पहले से सुरक्षित होगी.
जिन स्टेशनों से यह ट्रेन गुजरेगी उन प्लेटफॉर्म पर स्क्रीन डोर मिलेंगे. सुरक्षा के लिहाज से ये स्क्रीन डोर लगाए गए हैं ताकि कोई ट्रैक पर न जा सके. यह डोर तभी खुलेंगे जब प्लेटफॉर्म पर मेट्रो ट्रेन आकर खड़ी हो जाएगी.
यात्रियों के लिए खास
इसमें ड्राइवर केबिन निकाल देने के बाद ज्यादा यात्री सफर कर पाएंगे. छह डिब्बों वाली ट्रेन में पहले की तुलना में 240 यात्री ज्यादा (कुल 2280 पैसेंजर) आएंगे. 20 फीसदी ऊर्जा कम खपेगी और 10 फीसदी स्पीड बढ़ जाएगी.
ड्राइवरलेस ट्रेन का कंट्रोल रूम बाराखंभा रोड स्थित मेट्रो भवन में होगा. परेशानी के वक़्त यात्री अलार्म बटन दबाकर ऑपरेशंस कंट्रोल सेंटर से जुड़ सकते हैं. इसके अंदर-बाहर दोनों ओर सीसीटीवी कैमरे हैं. अलग-अलग जगह पांच कैमरे ट्रेन के बाहर होंगे. यात्रियों को वाई-फाई सुविधा मिलेगी.
विकलांगता के शिकार लोगों के लिए यह मेट्रो ज्यादा आरामदायक होगी. व्हीलचेयर वाले हिस्से में पीठ को सहारा देने के लिए विशेष बैकरेस्ट है. खड़े होकर यात्रा करने वालों के लिए पोल व ग्रैब रेल को दोबारा डिजाइन किया गया है.
महिलाओं एवं बुजुर्गों की सीटों को अलग रंग में रखा गया है. कुल 81 (486 कोच) ड्राइवरलेस मेट्रो ट्रेनें दिल्ली मेट्रो ने खरीदी हैं. इसमें 20 ट्रेनें दक्षिण कोरिया में बनी है,