यूपी के पंचायत चुनाव में जीत का झलक दिखा चुकी भारतीय जनता पार्टी मिशन 2022 को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। कभी केवल सवर्णों की पार्टी माने जाने वाली भाजपा जीत की निरंतरता को बनाए रखने के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ही अपनी रणनीति में लगातार बदलाव करती दिखी है। हाल के समय में बीजेपी ने खुद को पिछड़ों की पार्टी के रूप में पेश करने का हर संकेत दिया है और उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह कहानी और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। कभी सपा-बसपा की वोट बैंक माने जाने वाली पिछड़ी जातियों में पिछले काफी समय से भाजपा ने भी सेंधमारी शुरू कर दी है।
साल 2014 के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी गैर-यादव ओबीसी जातियों जैसे कुर्मी, कुशवाहा, लोध, जाट और कुछ अन्य छोटी जातियों को अपने वोटबैंक में जोड़ने में सफल रही है। 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ओबीसी मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ को और मजबूत करना चाहती है। पिछड़े समुदाय के प्रति भाजपा की रणनीति इसलिए भी अहम है, क्योंकि राज्य की लगभग 40% आबादी ओबीसी है।
न्यूज वेबसाइट ईटी के मुताबिक, 23 जुलाई को नई दिल्ली में बीजेपी ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है। माना जा रहा है कि इस बैठक में यूपी में ओबीसी के बीच पैर जमाने का मुद्दा उठाए जाने की संभावना है। ओबीसी समुदाय पर भाजपा की पकड़ कमजोर न हो जाए, इसलिए पार्टी अभी से ही रणनीति बनाने में जुट गई है।
भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रेसीडेंट के लक्ष्मण ने कहा कि पीएम मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में 27 ओबीसी मंत्री बनाए हैं और इसने समुदाय को विश्वास दिलाया है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान हम आगामी विधानसभा चुनावों सहित कई चीजों पर चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि ओबीसी मोर्चा चुनाव वाले राज्यों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
वहीं, यूपी भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रेसीडेंट नरेंद्र कश्यप ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भाजपा ओबीसी के बीच पहली पसंद रही है। इस बार हमारी रणनीति केंद्र और राज्य में बीजेपी सरकारों द्वारा किए गए कार्यों को उजागर करने के लिए संगठनात्मक पहुंच के माध्यम से ओबीसी के बीच और पैठ बनाने की है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि भाजपा का ज्यादातर ध्यान गैर-यादव ओबीसी पर है, जो राज्य की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा हैं। अलग-अलग इन जातियों की संख्या कम है, मगर साथ में इनका आकार बड़ा हो जाता है।
हालांकि, यूपी में बीजेपी के लिए एकमात्र समस्या जाट है, जिसका एक वर्ग कृषि कानूनों को लेकर पार्टी से नाराज दिख रहा है। जाटों की आबादी 2% है, मगर यूपी में विधानसभा की 55 सीटें ऐसी हैं, जहां उनका दबदबा है। फिर भी नरेंद्र कश्यप ने दावा किया कि किसान संघ के साथ कुछ ही जाट हैं। उनमें से ज्यादातर हमारे साथ हैं।
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने गैर-यादव ओबीसी जातियों के 148 उम्मीदवारों को टिकट दिया था और इससे पार्टी को लाभ हुआ। यूपी चुनाव से ठीक पहले जिस तरह से यूपी से ओबीसी जातियों के नेताओं को मोदी कैबिनेट में जगह मिली है, इसका असर भी आगामी चुनावों में देखने को मिल सकता है।