भाजपा अपने गलतियों से नही सीखती सबक, फिर जताया बागियों पर भरोशा

भाजपा पता नही क्यों यूपी चुनाव आते-आते अपने सिध्धांतो को ताकपर रखकर सपा ,काग्रेस  और बसपा के बागियों पर विशवास करके अपने कार्यकर्ताओं को जो वर्षो से मेहनत किए होते है उन्हें बागी बना देती है जो अंदर ही अंदर पार्टी उम्मीदवार का विरोध करके या नीर्द्लीय चुनाव लड़कर भारी छति पहुचाते है . भाजपा सत्ता नजदीक होने के बावजूद चुनाव में हार का सामना करती है . इसका उदाहरण २०१२ चुनाव में बाबूलाल कुशवाहा सरीखे बागियों को लेकर नुकशान उठाचुकी है .

इसबार मायावती भी बीजेपी की राह पर चल पड़ी है . जिस पार्टी ने नारा दिया गुंडों की छति पर मोहर लगाओ हाथी पर आज और यूपी में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई आज चुनाव में विरोधी मायावती की पार्टी को गुंडों की पार्टी करार दे रहे है सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा की अखिलेश ने जिन गुंडों माफियाओं को पार्टी में लाने के बाद बगावत किया है उमको मायवती बसपा में   विलय कराकर गुंडों की संरक्षक बन रही है अब  लोग कह  रहे है “गुंडे चढ़ गए हाथी पर गोली मारो छति पर” . अब जनता को तय करना है की यूपी में विकास चाहिए या दलों का दलदल .

kushwaha

यह वाक्य है २०१२ विधान सभा चुनाव की जिसको भ कहावत है कि ऐसा काम कभी मत करो कि धन भी जाए और धर्म भी जाए। लेकिन, उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह के फैसले लिए हैं उसे देखकर तो, यही साबित होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की आहट मिलते ही नितिन गडकरी ने उमा भारती को पार्टी में शामिल कराकर एक अच्छा संकेत दिया था कि अब कम से कम बीजेपी में चेहरा कौन है- इस सवाल के संकट से तो बचा जा सकेगा। और, उमा भारती की बीजेपी में वापसी से तेजी में एक बदलाव ये देखने को मिला था कि बीजेपी का कैडर जो, 2007 की करारी हार के बाद और फिर लोकसभा चुनावों में पिछड़ने के बाद चुपचाप घर बैठ गया था, काफी हद तक उठ खड़ा हुआ। लगा कि एक राज्य के  नितिन गडकरी ने उत्तर प्रदेश में जहां भी बैठक की, सभा की, कार्यकर्ताओं से साफ कहा कि टिकट में किसी की नहीं चलेगी। नेताओं की परिक्रमा मत करिए जो, 2007 के बाद 5 साल विधानसभा में रहा होगा। सर्वे में उसकी स्थिति जीतने की दिखेगी तो, टिकट उसके घर भेज दिया जाएगा। लगा कि गडकरी बीजेपी में रामराज्य लाने जा रहे हैं। लेकिन, नितिन गडकरी पर शायद कारोबारी अंदाज में नफा-नुकसान का गणित समझने की आदत ऐसी हावी हुई कि वो, राजनीतिक नफा-नुकसान का गणित समझने में अब नाकाम से दिख रहे हैं। बीजेपी अभी भी प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं और भ्रमित नेताओं वाली पार्टी ही बनी  थी .

 

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