परियोजना महाप्रबंधक ने बताया कि फोरलेन निर्माण का काम मेसर्स एसईडब्ल्यू-एसएसवाई हाइवेज लिमिटेड को दिया गया था। उप्सा ने इसके लिए कंपनी के प्रमोटर डायरेक्टर हैदराबाद की श्रीनगर कालोनी निवासी सुकरवा अनिल कुमार और अलोरी साईबाबा से एक अगस्त 2011 को एग्रीमेंट किया था।
डायरेक्टर्स ने 30 मार्च 2012 को काम शुरू करके 900 दिन में काम पूरा करने का दावा किया। परियोजना की कीमत 1735 करोड़ रुपये थी।
कंपनी ने एक अप्रैल 2012 से काम शुरू कराया। यह बेहद धीमी गति से चला और नवंबर, 2013 में बंद हो गया। कंपनी के प्रमोटर डायरेक्टर्स ने पर्यावरण मंत्रालय से हाईवे पर लगे पेड़ काटने के लिए एनओसी के नाम पर अतिरिक्त समय मांगा तो राज्य प्राधिकरण ने 11 जून 2014 को कंपनी को फिर से 721 दिन का समय दिया। हालांकि, इसके बाद भी काम शुरू नहीं किया गया।
कंपनी ने एक अप्रैल 2012 से काम शुरू कराया। यह बेहद धीमी गति से चला और नवंबर, 2013 में बंद हो गया। कंपनी के प्रमोटर डायरेक्टर्स ने पर्यावरण मंत्रालय से हाईवे पर लगे पेड़ काटने के लिए एनओसी के नाम पर अतिरिक्त समय मांगा तो राज्य प्राधिकरण ने 11 जून 2014 को कंपनी को फिर से 721 दिन का समय दिया। हालांकि, इसके बाद भी काम शुरू नहीं किया गया।
परियोजना महाप्रबंधक के अनुसार कंपनी के डायरेक्टर पीएस मूर्ति और यरलागदा वेंकटेश राव और प्रमोटर डायरेक्टर्स सुकरवा अनिल कुमार व अलोरी साईबाबा ने 14 बैंकों के प्रबंधकों से मिलकर 4554877505 रुपये का गबन किया है। गोमतीनगर सीओ सत्यसेन यादव ने कहा कि विवेचना ईओडब्ल्यू को ट्रांसफर की जा रही है।
फिर से बनेगा प्रोजेक्ट, दोगुनी हो जाएगी लागत
परियोजना महाप्रबंधक ने बताया कि ठेकेदार कंपनी और बैंकों की लूट-खसोट का असर जनसुविधाओं पर पड़ रहा है। जनता को यातायात की असुविधा हो रही है। अब यह प्रोजेक्ट फिर से बनाना होगा। लागत भी दोगुनी हो जाएगी।
बैंक से किए गए अनुबंध में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि लोन सिर्फ दिल्ली-सहारनपुर से यमुनोत्री सड़क को फोर लेन बनाने के लिए ही जारी किया जाएगा। नियमत: बैंकों के स्वतंत्र इंजीनियर लोन लेने वाली कंपनी की रिपोर्ट बनाते हैं। यही, स्वतंत्र इंजीनियर कंपनी के काम की निगरानी भी करते हैं।
उनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर ही बैंक लोन जारी करने की कार्रवाई करता है। हालांकि इस मामले में बैंकों के अधिकारियों की भूमिका संदेहास्पद रही। बैंकों की तरफ से किसी भी स्वतंत्र इंजीनियर को फोर लेन के निर्माण कार्य की भौतिक स्थिति की निगरानी के लिए नहीं भेजा गया।
ठेकेदार कंपनी के लोगों ने बैंक के चार्टर्ड अकाउंटेंट्स से मिलकर लोन हड़पने की साजिश रची और जाली जांच रिपोर्ट तैयार कराई। कंपनी के अधिकारी बिना काम किए बैंकों का लोन डकारते रहे और बैंक के अधिकारी आंखें मूंदे बैठे रहे।
इन बैंकों से लिया गया अरबों का लोन
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की इंडस्ट्रियल फाइनेंस शाखा, कॉरपोरेशन बैंक की कॉरपोरेट बैंकिंग शाखा, देना बैंक की कॉरपोरेट बिजनेस शाखा, आईसीआईसीआई बैंक, इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी लिमिटेड, इंडियन ओवरसीज बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, पंजाब नेशनल बैंक कॉरपोरेट शाखा, पंजाब एंड सिंध बैंक, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद इंडस्ट्रियल फाइनेंस शाखा, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर इंडस्ट्रियल फाइनेंस शाखा, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला कॉरपोरेट शाखा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया इंडस्ट्रियल फाइनेंस शाखा और विजया बैंक इंडस्ट्रियल फाइनेंस शाखा।