अफगानिस्तान में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की सेनाओं की मौजूदगी तक अच्छा प्रभाव रखने वाले भारत की स्थिति अब कुछ कमजोर होती दिख रही है। भले ही रूस ने अफगानिस्तान में भारत की अहम भूमिका बताई है, लेकिन अब तक वह उसका रोल तय नहीं कर पाया है। अफगानिस्तान के मामलों में अमेरिका, चीन, रूस और पाकिस्तान के अलावा भारत भी बड़ा स्टेकहोल्डर रहा है। यह समूह ही अफगानिस्तान में चीजों को संभालने और संघर्षविराम की स्थिति लाने के लिए प्रयास करता रहा है। बीते सप्ताह रूस के विदेश मंत्री सेरगे लावरोव ने ताशकंद में कहा था कि मॉस्को की ओर से अफगानिस्तान में वार्ता के लिए भारत और ईरान को भी एक पक्ष के तौर पर शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।
वहीं अब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विशेष दूत जमीर काबुलोव ने कहा कि भारत इस ग्रुप का हिस्सा नहीं बन सकता है क्योंकि उसका तालिबान पर कोई प्रभाव नहीं है। काबुलोव ने कहा कि अफगानिस्तान के मसले का हल निकालने के लिए जो ग्रुप तैयार हुआ है, उसमें उन लोगों को ही शामिल किया जाएगा, जिनका दोनों ही पक्षों पर समान प्रभाव हो। अफगानिस्तान में किसी हल निकालने के लिए यह जरूरी है कि संबंधित देशों का सरकार और तालिबान दोनों पर कुछ प्रभाव हो। रूसी एजेंसी तास के मुताबिक काबुलोव ने अफगानिस्तान के मामलों में भारत और पाकिस्तान के बीच संदेह और टकराव को लेकर भी बात की।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक काबुलोव ने कहा कि भारत यह सोचता है कि अफगानिस्तान का इस्तेमाल पाकिस्तान की ओर से उसके खिलाफ रणनीतिक तौर पर किया जा रहा है। वहीं पाकिस्तानी पक्ष को यह संदेह रहता है कि भारत की ओर से उसके खिलाफ अफगान आतंकियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। फिलहाल भारत की ओर से इस संबंध में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि रणनीतिक जानकारों का मानना है कि तालिबान के उभरने के साथ ही भारत के लिए चिंताओं में इजाफा हो सकता है।